'जिस प्रकार सूखे बांस आपस की रगड़ से ही जलकर भस्म हो जाते हैं .उसी प्रकार अहंकारी व्यक्ति आपस में टकराते हैं और कलह की अग्नि में जल मरते हैं | '
अहंकार एक रोग है इसके कारण सही सोच -समझ और सम्यक जीवन द्रष्टि समाप्त हो जाती है | इसकी पीड़ा से हर कोई पीड़ित है | अहंकार के रोग की खास बात यह है कि यदि व्यक्ति सफल होता है तो उसका अहंकार भी उसी अनुपात में बढ़ता जाता है और वह एक विशाल चट्टान की भाँति जीवन के सुपथ को रोक लेता है | इसके विपरीत यदि व्यक्ति असफल हुआ तो उसका अहंकार एक घाव की भाँति रिसने लगता है और धीरे धीरे मन में हीनता की ग्रंथि बन जाती है | सद्विवेक और सद्ज्ञान ही इस अहंकार के रोग की औषधि व उपचार है | सद्विवेक होने पर व्यक्ति कार्य की सफलता या विफलता से प्रभावित नहीं होता | विवेक कठिन परिस्थितियों में शान्ति और धैर्य के साथ संघर्षशील रहने की प्रेरणा देता है | जब कार्य को ईश्वर की पूजा समझकर किया जाता है तब वहां अहंकार नहीं होता ,केवल विवेक होता है |
अहंकार एक रोग है इसके कारण सही सोच -समझ और सम्यक जीवन द्रष्टि समाप्त हो जाती है | इसकी पीड़ा से हर कोई पीड़ित है | अहंकार के रोग की खास बात यह है कि यदि व्यक्ति सफल होता है तो उसका अहंकार भी उसी अनुपात में बढ़ता जाता है और वह एक विशाल चट्टान की भाँति जीवन के सुपथ को रोक लेता है | इसके विपरीत यदि व्यक्ति असफल हुआ तो उसका अहंकार एक घाव की भाँति रिसने लगता है और धीरे धीरे मन में हीनता की ग्रंथि बन जाती है | सद्विवेक और सद्ज्ञान ही इस अहंकार के रोग की औषधि व उपचार है | सद्विवेक होने पर व्यक्ति कार्य की सफलता या विफलता से प्रभावित नहीं होता | विवेक कठिन परिस्थितियों में शान्ति और धैर्य के साथ संघर्षशील रहने की प्रेरणा देता है | जब कार्य को ईश्वर की पूजा समझकर किया जाता है तब वहां अहंकार नहीं होता ,केवल विवेक होता है |
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