23 May 2013

ISHVAR

'कण -कण में व्याप्त ईश्वर को करुणा और सेवा के दो नेत्रों से देखा जा सकता है | '

युवक तार्किक था | संत ने ईश्वर के पक्ष में अनेक प्रमाण दिये ,किंतु वह मानने के लिये तैयार न था | युवक ने कहा -"स्वामी जी विज्ञान ने इतनी प्रगति कर ली है कि यदि ईश्वर ह्रदय की गुफा में भी होता ,तो डॉक्टर को हार्ट आपरेशन के समय मिल गया होता | "
स्वामी जी को युवक की स्थूल द्रष्टि समझते देर न लगी | उन्होंने समझाया -"जिस तरह फूल की गंध आँख से नहीं ,घ्राण (सूंघना )से मालुम होती है ,संगीत का रस आँख से नहीं कान से अनुभव होता है | दूध के अंदर का मक्खन मथने से प्रकट होता है | उसी प्रकार कण -कण में व्याप्त ईश्वर करुणा और सेवा के दो नेत्रों से ही देखा जा सकता है | "

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