'सजल संवेदनाएं जीवन साधना की धुरी हैं | यह जीवन का स्वर्णिम सच है कि संवेदनशीलता का चुम्बकत्व जहां जितना गहरा होता है ,वहां उसी के अनुपात में अपने आप ही सद्गुणों की स्रष्टि होती है | इसके विपरीत संवेदनहीनता जहां जितनी मात्रा में पनपती है ,उसी के अनुरूप दुर्गुणों ,दोषों की कतारें खड़ी हो जाती हैं |
संवेदनशीलता को ठुकराकर ,इनकी उपेक्षा करके विकास एवं प्रगति के कितने ही प्रतिमान क्यों न तय किये जायें ,पर अतृप्ति की कसक हमेशा ही मन को सालती रहती है | धन ,सम्मान ,प्रतिष्ठा के बहुतेरे साधन अंतर्मन को संतोष नहीं दे पाते ,सब कुछ मिल जाने पर भी खालीपन बुरी तरह से कचोटता रहता है |
भावनात्मक तृप्ति की अनुभूति किस तरह से हो ?तो जवाब बड़ा ही आसान है --भावनाएं बांटने पर मिलती ,बिखेरने पर बढ़ती हैं ,यह ऐसी संपदा है ,जिसे जितना लुटाओगे ,उतनी ही बढ़ेगी | इसलिये जो भावनात्मक तृप्ति चाहते हैं वे अपनी भावनाएं पीड़ितों को ,जरुरतमंदों को दें |
इस परम पवित्र निष्काम कर्म का परिणाम हर हालत में संतुष्टि एवं तृप्तिदायक होगा |
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