'तृष्णा का कोई अंत नहीं | आकाश की तरह उसके पेट में बहुत कुछ भरा होने पर भी खाली ही रहता है | '
हनुमानजी लंका जा रहे थे | समुद्र के बीच में कई छोटे द्वीप थे | उनमे एक में सुरसा नाम राक्षसी रहती थी | उसे अनेक प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त थीं । उनमे एक यह भी थी कि वह अपना शरीर जब चाहे तब जितना छोटा या बड़ा कर ले |
वह लंका की प्रहरी थी | जब हनुमानजी को ऊपर से जाते देखा तो सुरसा ने अपना मुँह बड़ा करके हनुमानजी को दबोच लिया
हनुमानजी को भी सिद्धियाँ प्राप्त थीं | उन्होंने भी अपना शरीर बढ़ाया ताकि सुरसा के मुँह से निकल सकें | सुरसा अपना मुँह बढ़ाती गई ,हनुमानजी भी बढ़ाते गये |
इस प्रतिस्पर्धा में विस्तार तो बढ़ता जा रहा था पर कोई हल नहीं निकल रहा था | हनुमानजी को दूसरी तरकीब सूझी | उन्होंने अपना रूप छोटा किया और सहज ही बाहर निकल गये ,सुरसा का मुँह फटा का फटा रह गया |
तृष्णा सुरसा है | महत्वाकांक्षी अपने वैभव का विस्तार करते हैं पर वे उतने नहीं बढ़ पाते जितनी की तृष्णा बढ़ जाती है |
संतोष अपनाकर विनम्र बन कर ही इस संकट से उबरा जा सकता है |
हनुमानजी लंका जा रहे थे | समुद्र के बीच में कई छोटे द्वीप थे | उनमे एक में सुरसा नाम राक्षसी रहती थी | उसे अनेक प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त थीं । उनमे एक यह भी थी कि वह अपना शरीर जब चाहे तब जितना छोटा या बड़ा कर ले |
वह लंका की प्रहरी थी | जब हनुमानजी को ऊपर से जाते देखा तो सुरसा ने अपना मुँह बड़ा करके हनुमानजी को दबोच लिया
हनुमानजी को भी सिद्धियाँ प्राप्त थीं | उन्होंने भी अपना शरीर बढ़ाया ताकि सुरसा के मुँह से निकल सकें | सुरसा अपना मुँह बढ़ाती गई ,हनुमानजी भी बढ़ाते गये |
इस प्रतिस्पर्धा में विस्तार तो बढ़ता जा रहा था पर कोई हल नहीं निकल रहा था | हनुमानजी को दूसरी तरकीब सूझी | उन्होंने अपना रूप छोटा किया और सहज ही बाहर निकल गये ,सुरसा का मुँह फटा का फटा रह गया |
तृष्णा सुरसा है | महत्वाकांक्षी अपने वैभव का विस्तार करते हैं पर वे उतने नहीं बढ़ पाते जितनी की तृष्णा बढ़ जाती है |
संतोष अपनाकर विनम्र बन कर ही इस संकट से उबरा जा सकता है |
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