'जो विवेकवान हैं उनके लिये दुःख चुनौती है , परमात्मा द्वारा प्रदत्त जागरण का अवसर है । '
व्यक्ति को परमात्मा पर अटल विश्वास रखते हुए सकारात्मकता को अपनाना चाहिए और अपनी क्षमताओं का सुनियोजन करना चाहिए । दुखपूर्ण अवस्थाओं के कष्ट , संघर्ष हमारे विकास में सहायक होते हैं । इसे एक मार्मिक प्रसंग से समझा जा सकता है ---
एक व्यक्ति को तितली का एक कोया (अंडा ) मिल गया , वह उसे ध्यान से देखता रहा । एक दिन उस कोये में एक छोटा सा छेद निकल आया । उसने देखा एक तितली उसमे से निकलने के लिए भारी संघर्ष कर रही है , लेकिन वह सफल नहीं हो पा रही है । वह घंटों तक उस तितली के संघर्ष को देखता रहा । उसे लगा कि बेचारी तितली थक गई है क्योंकि वह कुछ भी प्रगति नहीं कर पा रही थी । उस व्यक्ति ने सोचा कि मुझे इस तितली की सहायता करनी चाहिए । उसने कैंची ली और कोये के शेष भाग को काट डाला । उसमे से वह तितली सुगमता से बाहर आ गई ।
पर यह क्या ! उस तितली का अंग सूजा हुआ था और उसके पंख छोटे और सिकुड़े हुए थे , वह उड़ने में भी
असमर्थ थी । वह व्यक्ति करुणा और त्वरा , दोनों के कारण यह नहीं समझ सका कि वह प्रतिबंधक कोया और उसमे से निकलने के लिये तितली द्वारा किया जाने वाला संघर्ष प्रकृति का तरीका था , ताकि तितली के तन से रक्त या द्रव उस तितली के पंखो की ओर बहे , जिससे कि वे इतने शक्तिशाली हो सकें कि उनकी सहायता से कोये से निकलते ही तितली उड़ने में समर्थ हो सके ।
इस तितली के समान ही व्यक्ति के जीवन को निखारने में संघर्षों की आवश्यकता होती है । इन संघर्षों के अभाव में उसकी शक्तियां अविकसित रह जाती हैं । यदि परमात्मा व्यक्ति के जीवन में ऐसी व्यवस्था कर देता कि उसका जीवन बिना अवरोधों के सरलतापूर्वक चलता रहे , तो वह पंगु बन जायेगा । संघर्ष व्यक्ति के जीवन -विकास के लिये बहुत जरुरी हैं और इन संघर्ष के पलों से जूझने के लिये सकारात्मक सोच व विवेकशक्ति का होना भी जरुरी है , अन्यथा जिंदगी में आने वाले उतार -चढ़ाव उसे भटका सकते हैं ।
व्यक्ति को परमात्मा पर अटल विश्वास रखते हुए सकारात्मकता को अपनाना चाहिए और अपनी क्षमताओं का सुनियोजन करना चाहिए । दुखपूर्ण अवस्थाओं के कष्ट , संघर्ष हमारे विकास में सहायक होते हैं । इसे एक मार्मिक प्रसंग से समझा जा सकता है ---
एक व्यक्ति को तितली का एक कोया (अंडा ) मिल गया , वह उसे ध्यान से देखता रहा । एक दिन उस कोये में एक छोटा सा छेद निकल आया । उसने देखा एक तितली उसमे से निकलने के लिए भारी संघर्ष कर रही है , लेकिन वह सफल नहीं हो पा रही है । वह घंटों तक उस तितली के संघर्ष को देखता रहा । उसे लगा कि बेचारी तितली थक गई है क्योंकि वह कुछ भी प्रगति नहीं कर पा रही थी । उस व्यक्ति ने सोचा कि मुझे इस तितली की सहायता करनी चाहिए । उसने कैंची ली और कोये के शेष भाग को काट डाला । उसमे से वह तितली सुगमता से बाहर आ गई ।
पर यह क्या ! उस तितली का अंग सूजा हुआ था और उसके पंख छोटे और सिकुड़े हुए थे , वह उड़ने में भी
असमर्थ थी । वह व्यक्ति करुणा और त्वरा , दोनों के कारण यह नहीं समझ सका कि वह प्रतिबंधक कोया और उसमे से निकलने के लिये तितली द्वारा किया जाने वाला संघर्ष प्रकृति का तरीका था , ताकि तितली के तन से रक्त या द्रव उस तितली के पंखो की ओर बहे , जिससे कि वे इतने शक्तिशाली हो सकें कि उनकी सहायता से कोये से निकलते ही तितली उड़ने में समर्थ हो सके ।
इस तितली के समान ही व्यक्ति के जीवन को निखारने में संघर्षों की आवश्यकता होती है । इन संघर्षों के अभाव में उसकी शक्तियां अविकसित रह जाती हैं । यदि परमात्मा व्यक्ति के जीवन में ऐसी व्यवस्था कर देता कि उसका जीवन बिना अवरोधों के सरलतापूर्वक चलता रहे , तो वह पंगु बन जायेगा । संघर्ष व्यक्ति के जीवन -विकास के लिये बहुत जरुरी हैं और इन संघर्ष के पलों से जूझने के लिये सकारात्मक सोच व विवेकशक्ति का होना भी जरुरी है , अन्यथा जिंदगी में आने वाले उतार -चढ़ाव उसे भटका सकते हैं ।
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