जीवन में बारंबार गलतियाँ क्यों होती हैं ? गलती न करने का संकल्प लेकर भी फिर वही गलती क्यों हो जाती है ? हमारे सारे प्रयास-पुरुषार्थ धरे के धरे रह जाते हैं और हम कुछ भी नहीं कर पाते
ऋषि कहते हैं हर वह कर्म, जो हमारी चेतना को धूमिल करता है, नीचे गिराता है, पतित करता है, पापकर्म कहलाता है । पापकर्म करना ही तो गलती करना है ।
गलती करना अर्थात अपनी ही नजरों से गिरने वाला कर्म करना । काम, क्रोध, लोभ, मोह से उपजा हर कर्म इसी श्रेणी में माना जाता है । ये सारे मनोविकार हैं, इनके उभरने पर सबसे पहले हमारा विवेक कमजोर हो जाता है, हम दुर्बल हो जाते हैं, हमें उचित-अनुचित का ज्ञान नहीं रहता, हमारी यह कमजोरी एवं दुर्बलता ही हमें गलती करने के लिये विवश कर देती है ।
मानव मन के मर्मज्ञ ऋषि कहते हैं कि गलतियाँ बारंबार होती हैं, एक ही गलती को हम बार-बार दोहराते हैं और परेशान होते हैं ।
यह एक महाप्रश्न है कि इन गलतियों को सुधारा कैसे जाये ? सर्वप्रथम हमें स्वयं सुधरने का संकल्प लेना होगा । जब तक व्यक्ति स्वयं न सुधरना चाहे उसे भगवान भी नहीं सुधार सकते ।
सकारात्मक चिंतन एवं आशावादी सोच से इन गलतियों से छुटकारा पाने में मदद मिलती है ।
ऋषि कहते हैं कि निष्काम कर्म करने के साथ गायत्री मंत्र का जप करने से, परमेश्वर की शरण में जाने से, भावाकुल ह्रदय से उन्हें पुकारने से धीरे-धीरे हमारे मनोविकार दूर होते हैं, मन का मैल दूर होता है और मन निर्मल होने से गलतियों का जड़ से निराकरण होता है ।
ऋषि कहते हैं हर वह कर्म, जो हमारी चेतना को धूमिल करता है, नीचे गिराता है, पतित करता है, पापकर्म कहलाता है । पापकर्म करना ही तो गलती करना है ।
गलती करना अर्थात अपनी ही नजरों से गिरने वाला कर्म करना । काम, क्रोध, लोभ, मोह से उपजा हर कर्म इसी श्रेणी में माना जाता है । ये सारे मनोविकार हैं, इनके उभरने पर सबसे पहले हमारा विवेक कमजोर हो जाता है, हम दुर्बल हो जाते हैं, हमें उचित-अनुचित का ज्ञान नहीं रहता, हमारी यह कमजोरी एवं दुर्बलता ही हमें गलती करने के लिये विवश कर देती है ।
मानव मन के मर्मज्ञ ऋषि कहते हैं कि गलतियाँ बारंबार होती हैं, एक ही गलती को हम बार-बार दोहराते हैं और परेशान होते हैं ।
यह एक महाप्रश्न है कि इन गलतियों को सुधारा कैसे जाये ? सर्वप्रथम हमें स्वयं सुधरने का संकल्प लेना होगा । जब तक व्यक्ति स्वयं न सुधरना चाहे उसे भगवान भी नहीं सुधार सकते ।
सकारात्मक चिंतन एवं आशावादी सोच से इन गलतियों से छुटकारा पाने में मदद मिलती है ।
ऋषि कहते हैं कि निष्काम कर्म करने के साथ गायत्री मंत्र का जप करने से, परमेश्वर की शरण में जाने से, भावाकुल ह्रदय से उन्हें पुकारने से धीरे-धीरे हमारे मनोविकार दूर होते हैं, मन का मैल दूर होता है और मन निर्मल होने से गलतियों का जड़ से निराकरण होता है ।
No comments:
Post a Comment