परशुराम जी की मान्यता थी कि -- नम्रता और ज्ञान से सज्जनों को और दंड से दुष्टों को जीता जा सकता है । ब्रह्म शक्ति और शस्त्र शक्ति दोनों ही आवश्यक हैं । शास्त्र से भी और शस्त्र से भी धर्म का प्रयोजन सिद्ध करना चाहिए ।
अधर्म का उन्मूलन और धर्म का संस्थापन एक ही रथ के दो पहिये हैं । अनीति से लड़ने का कठोर व्रत लेना धर्म साधना का एक अंग है । परशुराम जी का कहना था ---- ' अनीति का प्रतिकार करने के लिए जब अहिंसा समर्थ न हो तो हिंसा भी अपनाई जा सकती है । परशुराम जी शास्त्र और धर्म के गूढ़ तत्वों को भली भांति समझते थे इसलिए आवश्यकता पड़ने पर कांटे से काँटा निकालने और विष से विष मारने की नीति के अनुसार ऋषि होते हुए भी उन्होंने धर्म रक्षा के लिए सशस्त्र अभियान आरम्भ किया |
अधर्म का उन्मूलन और धर्म का संस्थापन एक ही रथ के दो पहिये हैं । अनीति से लड़ने का कठोर व्रत लेना धर्म साधना का एक अंग है । परशुराम जी का कहना था ---- ' अनीति का प्रतिकार करने के लिए जब अहिंसा समर्थ न हो तो हिंसा भी अपनाई जा सकती है । परशुराम जी शास्त्र और धर्म के गूढ़ तत्वों को भली भांति समझते थे इसलिए आवश्यकता पड़ने पर कांटे से काँटा निकालने और विष से विष मारने की नीति के अनुसार ऋषि होते हुए भी उन्होंने धर्म रक्षा के लिए सशस्त्र अभियान आरम्भ किया |
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