' स्त्री हो या पुरुष उसकी श्रेष्ठता का आधार उसका उज्जवल चरित्र और सच्ची कर्तव्य निष्ठा है उस जमाने में मुसलमानी और अंग्रेजी शासन में पराधीन रहने से अधिकांश राजाओं का नैतिक स्तर गिर गया था और वे प्रजा की उन्नति और सुख - समृद्धि की अपेक्षा अपने वैभव और विलास की तरफ ही अधिक ध्यान देते थे । ऐसे युग में महारानी लक्ष्मीबाई ने एक प्रसिद्ध राज्य की अधिकारिणी बन जाने पर भी पूर्ण संयम और त्याग का जीवन व्यतीत किया और अपनी सम्पूर्ण शक्ति को प्रजा पालन में लगा दिया ।
रानी लक्ष्मीबाई को जून 1857 से मार्च 1858 तक लगभग दस महीने झाँसी पर शासन करने का अवसर प्राप्त हुआ उस कठिन समय में जब देश में भयंकर राजनीतिक भूचाल आया हुआ था , झांसी की रानी ने द्रढ़ता पूर्वक अपने राज्य में शान्ति और सुव्यवस्था कायम कर प्रजा को सुखी बनाने का प्रयत्न किया । वह केवल 24 वर्ष जीवित रहीं और इसमें भी जनता के सामने उनकी कार्यवाही केवल एक वर्ष के शासन काल में प्रकट हुई पर इस बीच उन्होंने ऐसे काम कर दिखाए कि वे इतिहास में अमर हो गईं ।
भारतीय स्वाधीनता की ' सत्तावन की क्रान्ति ' में जिस तरह रानी लक्ष्मीबाई ने निशंक होकर शत्रु के सम्मुख युद्ध किया और बिना कदम पीछे हटाये तलवारों और बंदूकों के सामने निर्भय होकर बढ्ती चली गईं उसका उदाहरण उस समय के इतिहास में दूसरा नहीं मिलता । रानी की अलौकिक वीरता और अस्त्र संचालन की कला देखकर सब दंग रह गये । उनकी वीरता के संबंध में अंग्रेज सेनापति सर ह्यूरोज ने जो शब्द कहे वे इतिहास में अमर बने हुए हैं । उन्होंने लिखा था ----
" शत्रु दल ( भारतीय विद्रोहियों ) में अगर कोई सच्चा मर्द था तो वह झाँसी की रानी ही थीं । "
रानी लक्ष्मीबाई को जून 1857 से मार्च 1858 तक लगभग दस महीने झाँसी पर शासन करने का अवसर प्राप्त हुआ उस कठिन समय में जब देश में भयंकर राजनीतिक भूचाल आया हुआ था , झांसी की रानी ने द्रढ़ता पूर्वक अपने राज्य में शान्ति और सुव्यवस्था कायम कर प्रजा को सुखी बनाने का प्रयत्न किया । वह केवल 24 वर्ष जीवित रहीं और इसमें भी जनता के सामने उनकी कार्यवाही केवल एक वर्ष के शासन काल में प्रकट हुई पर इस बीच उन्होंने ऐसे काम कर दिखाए कि वे इतिहास में अमर हो गईं ।
भारतीय स्वाधीनता की ' सत्तावन की क्रान्ति ' में जिस तरह रानी लक्ष्मीबाई ने निशंक होकर शत्रु के सम्मुख युद्ध किया और बिना कदम पीछे हटाये तलवारों और बंदूकों के सामने निर्भय होकर बढ्ती चली गईं उसका उदाहरण उस समय के इतिहास में दूसरा नहीं मिलता । रानी की अलौकिक वीरता और अस्त्र संचालन की कला देखकर सब दंग रह गये । उनकी वीरता के संबंध में अंग्रेज सेनापति सर ह्यूरोज ने जो शब्द कहे वे इतिहास में अमर बने हुए हैं । उन्होंने लिखा था ----
" शत्रु दल ( भारतीय विद्रोहियों ) में अगर कोई सच्चा मर्द था तो वह झाँसी की रानी ही थीं । "
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