कर्नाटक के महान सन्त वसवेश्वर ने बताया कि -- ईश्वर की प्राप्ति उच्च चरित्र , उदार प्रकृति , परमार्थ परायणता पर निर्भर है । केवल पूजा - प्रार्थना के आधार पर भगवान का अनुग्रह प्राप्त नहीं किया जा सकता ।
उनका कहना था कि जो व्यक्ति अपने व्यक्तिक और सामाजिक कर्तव्यों का पालन निष्ठापूर्वक करता है वही सच्चा धर्म परायण है । वे पूजा - पाठ द्वारा पाप फल न मिलने का बहकावा नहीं देते थे वरन यह कहते थे कि जो धर्म प्रेमी है उसे पाप से घ्रणा करनी चाहिए और अवांछनीय गतिविधियों का सर्वथा त्याग करना चाहिए , उसके लिए भले ही अभावग्रस्त या कष्ट साध्य जीवन क्यों न जीना पड़े ।
उन्होंने भक्ति और ज्ञान के दर्शन को कर्मयोग के बिना अधूरा बताया । इसलिए वे स्वयं भी जीविका के लिए भिक्षा पर निर्भर नहीं रहे । राज - दरबार में वे राजकीय पत्र लेखक के रूप में काम करने लगे । राजकीय कर्मचारी के रूप में उनके पास अनेक प्रलोभन आये परन्तु एक तटस्थ योगी की भांति वसवेश्वर पूर्ण योग्यता , सच्चरित्रता, कर्तव्य परायणता और प्रमाणिकता से काम करते रहे राजकीय कार्यों से बचा हुआ समय वे समाज सुधार और हिन्दू धर्म और संस्कृति के प्रसार में लगाते थे ।
उनका कहना था कि जो व्यक्ति अपने व्यक्तिक और सामाजिक कर्तव्यों का पालन निष्ठापूर्वक करता है वही सच्चा धर्म परायण है । वे पूजा - पाठ द्वारा पाप फल न मिलने का बहकावा नहीं देते थे वरन यह कहते थे कि जो धर्म प्रेमी है उसे पाप से घ्रणा करनी चाहिए और अवांछनीय गतिविधियों का सर्वथा त्याग करना चाहिए , उसके लिए भले ही अभावग्रस्त या कष्ट साध्य जीवन क्यों न जीना पड़े ।
उन्होंने भक्ति और ज्ञान के दर्शन को कर्मयोग के बिना अधूरा बताया । इसलिए वे स्वयं भी जीविका के लिए भिक्षा पर निर्भर नहीं रहे । राज - दरबार में वे राजकीय पत्र लेखक के रूप में काम करने लगे । राजकीय कर्मचारी के रूप में उनके पास अनेक प्रलोभन आये परन्तु एक तटस्थ योगी की भांति वसवेश्वर पूर्ण योग्यता , सच्चरित्रता, कर्तव्य परायणता और प्रमाणिकता से काम करते रहे राजकीय कार्यों से बचा हुआ समय वे समाज सुधार और हिन्दू धर्म और संस्कृति के प्रसार में लगाते थे ।
No comments:
Post a Comment