' मालवीय जी की तुलना प्राचीन समय के उन मुनि - ऋषियों से की जा सकती है जो राजा - महाराजा और श्रीमंतों से सुवर्ण सहित हजारों गायों का दान लेकर उनके द्वारा गुरुकुल का संचालन करते थे । '
मालवीय जी को अनेक विद्वानों ने ' भिक्षुक - सम्राट ' की पदवी दी थी । यह मालवीय जी का ही साहस था जो उन्होंने अकेते ही ' हिन्दू - विश्वविद्यालय ' जैसी विशाल संस्था को खोलने का संकल्प कर लिया और उसके लिए कई करोड़ रुपया इकठ्ठा कर दिखाया । उनके निर्मल श्वेत वस्त्र , भव्य शरीर और मीठी वाणी में जादू की शक्ति थी । मालवीय जी का यह जादू वास्तव में उनकी नि:स्वार्थ सेवा भावना ही थी । जब लोग यह देखते थे कि मालवीय जी में इतनी योग्यता है कि वे वकालत करके या सरकारी नौकरी करके ठाठ - बाट का जीवन जी सकते हैं लेकिन फिर भी इन सबका त्याग करके कष्ट और कठिनाइयों के मार्ग को अपना रहें हैं
यह मालवीय जी के तप - त्याग और आत्म समर्पण का ही परिणाम था कि वे अकेले ही करोड़ों का चन्दा प्राप्त कर सके और उसकी एक - एक पाई उन्होंने विश्वविद्यालय के निमित्त खर्च कर दी ।
मालवीय जी को अनेक विद्वानों ने ' भिक्षुक - सम्राट ' की पदवी दी थी । यह मालवीय जी का ही साहस था जो उन्होंने अकेते ही ' हिन्दू - विश्वविद्यालय ' जैसी विशाल संस्था को खोलने का संकल्प कर लिया और उसके लिए कई करोड़ रुपया इकठ्ठा कर दिखाया । उनके निर्मल श्वेत वस्त्र , भव्य शरीर और मीठी वाणी में जादू की शक्ति थी । मालवीय जी का यह जादू वास्तव में उनकी नि:स्वार्थ सेवा भावना ही थी । जब लोग यह देखते थे कि मालवीय जी में इतनी योग्यता है कि वे वकालत करके या सरकारी नौकरी करके ठाठ - बाट का जीवन जी सकते हैं लेकिन फिर भी इन सबका त्याग करके कष्ट और कठिनाइयों के मार्ग को अपना रहें हैं
यह मालवीय जी के तप - त्याग और आत्म समर्पण का ही परिणाम था कि वे अकेले ही करोड़ों का चन्दा प्राप्त कर सके और उसकी एक - एक पाई उन्होंने विश्वविद्यालय के निमित्त खर्च कर दी ।
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