एक स्पेनिश पत्रकार ने एक बार महात्मा गाँधी से प्रश्न किया ---- " आप अब जिस रूप में हैं , वह बनने की प्रेरणा कहाँ से मिली ? " गाँधी जी ने बताया ---- भगवान् श्री कृष्ण , महापुरुष ईसा , दार्शनिक रस्किन और संत टालस्टाय |
पत्रकार अचम्भे में आ गया , उसने अपनी आशंका व्यक्त की , इस पर गांधीजी बोले ----" महापुरुष सदैव बने नहीं रहते , समय के साथ उनको भी जाना पड़ता है किन्तु विचारों , पुस्तकों के रूप में उनकी आत्मा इस धरती पर चिरकाल तक बनी रहती है , उनमे लोगों को दीक्षित करने , संस्कारवान बनाने और जीवन पथ पर अग्रसर होने के लिए शक्ति , प्रकाश और प्रेरणाएं देने की सामर्थ्य बनी रहती है मुझे भी इसी प्रकार उनसे प्रकाश मिला है ।
" गीता के प्रतिपादन किसी भी शंकाशील व्यक्ति का सही मार्गदर्शन कर सकते हैं । संसार में रहकर कर्म करते हुए भी किस तरह विरक्त और योगी रहा जा सकता है , यह बातें मुझे गीता ने
पढ़ाई । इस तरह मैं भगवन कृष्ण से दीक्षित हुआ ।
दलित वर्ग से प्रेम व उनके उद्धार की प्रेरणा मुझे ' बाइबिल ' से मिली । इस तरह मैं महापुरुष ईसा का अनुयायी बना । युवा अवस्था में ही मेरे विचारों में प्रौढ़ता , कर्म में प्रखरता तथा आशापूर्ण जीवन जीने का प्रकाश -- ' अन टू दिस लास्ट ' से मिला । इस तरह रस्किन मेरे गुरु हुए । और बाह्य सुखों , संग्रह और आकर्षणों से किस तरह बचा जा सकता है यह विद्दा मैंने ' दि किंगडम ऑफ गॉड विदइन यू ' से पाई । इस तरह मैं महात्मा टालस्टाय का शिष्य हूँ । "
सशक्त विचारों के मूर्तिमान प्राणपुंज इन पुस्तकों के सान्निध्य में मैं नहीं आया होता तो अब मैं जिस रूप में हूँ , उस तक पहुँचने वाली सीढ़ी से मैं उसी तरह वंचित रहा होता , जिस तरह स्वाध्याय और महापुरुषों के सान्निध्य में न आने वाला कोई भी व्यक्ति वंचित रह जाता है ।
पत्रकार अचम्भे में आ गया , उसने अपनी आशंका व्यक्त की , इस पर गांधीजी बोले ----" महापुरुष सदैव बने नहीं रहते , समय के साथ उनको भी जाना पड़ता है किन्तु विचारों , पुस्तकों के रूप में उनकी आत्मा इस धरती पर चिरकाल तक बनी रहती है , उनमे लोगों को दीक्षित करने , संस्कारवान बनाने और जीवन पथ पर अग्रसर होने के लिए शक्ति , प्रकाश और प्रेरणाएं देने की सामर्थ्य बनी रहती है मुझे भी इसी प्रकार उनसे प्रकाश मिला है ।
" गीता के प्रतिपादन किसी भी शंकाशील व्यक्ति का सही मार्गदर्शन कर सकते हैं । संसार में रहकर कर्म करते हुए भी किस तरह विरक्त और योगी रहा जा सकता है , यह बातें मुझे गीता ने
पढ़ाई । इस तरह मैं भगवन कृष्ण से दीक्षित हुआ ।
दलित वर्ग से प्रेम व उनके उद्धार की प्रेरणा मुझे ' बाइबिल ' से मिली । इस तरह मैं महापुरुष ईसा का अनुयायी बना । युवा अवस्था में ही मेरे विचारों में प्रौढ़ता , कर्म में प्रखरता तथा आशापूर्ण जीवन जीने का प्रकाश -- ' अन टू दिस लास्ट ' से मिला । इस तरह रस्किन मेरे गुरु हुए । और बाह्य सुखों , संग्रह और आकर्षणों से किस तरह बचा जा सकता है यह विद्दा मैंने ' दि किंगडम ऑफ गॉड विदइन यू ' से पाई । इस तरह मैं महात्मा टालस्टाय का शिष्य हूँ । "
सशक्त विचारों के मूर्तिमान प्राणपुंज इन पुस्तकों के सान्निध्य में मैं नहीं आया होता तो अब मैं जिस रूप में हूँ , उस तक पहुँचने वाली सीढ़ी से मैं उसी तरह वंचित रहा होता , जिस तरह स्वाध्याय और महापुरुषों के सान्निध्य में न आने वाला कोई भी व्यक्ति वंचित रह जाता है ।
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