अपने साप्ताहिक पत्र .' अभ्युदय ' का उद्देश्य बताते हुए पं. मदनमोहन मालवीय ने लिखा --- " देश के थोड़े से मनुष्यों को सुख प्राप्त होने से देश का अभ्युदय नहीं कहा जा सकता , जब कार्य परायण और पाप से बचकर रहने वाले समस्त मनुष्यों को सुख प्राप्त हो और वह सुख स्थायी हो तभी उस देश के विषय में कहा जा सकता है कि उसका अभ्युदय हुआ है l सुख स्थायी तभी हो सकता है जब वह धर्म से उत्पन्न हो और धर्म से रक्षित हो l अधर्म से उत्पन्न और अधर्म से रक्षित सुख कभी भी स्थायी नहीं होता और उसका परिणाम विष से भी अधिक कड़वा होता है l
कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह ने ' हिंदुस्तान ' नमक पत्र के सम्पादन के लिए मालवीयजी को आमंत्रित किया l पद सम्मानजनक और आर्थिक द्रष्टि से आकर्षक था लेकिन मालवीयजी के सामने एक कठिनाई थी कि उन्हें शराब से घ्रणा थी और राजा साहब शराब बहुत पीते थे l अत: मालवीयजी ने सम्पदन का उत्तरदायित्व लेने की शर्त यह रखी कि राजा साहब नशे की हालत में उनसे न मिले l यह शर्त उन्होंने स्वीकार कर ली और बहुत दिनों तक निभी l लेकिन एक दिन नशे की हालत में वे मालवीयजी के कार्यालय उनसे मिलने जा पहुंचे l आदर्श और स्वाभिमान को प्रमुख मानने वाले महामना मालवीय स्तीफा देकर वापस लौट आये और लाख कहने पर भी उन्होंने वह उत्तरदायित्व फिर से नहीं स्वीकारा l राजा साहब पर मालवीयजी की इस आदर्शवादिता का इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि उनका वेतन ढाई सौ रूपये मासिक वकालत पढ़ने की छात्रवृति के रूप में उन्हें वे सतत भेजते रहे l
कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह ने ' हिंदुस्तान ' नमक पत्र के सम्पादन के लिए मालवीयजी को आमंत्रित किया l पद सम्मानजनक और आर्थिक द्रष्टि से आकर्षक था लेकिन मालवीयजी के सामने एक कठिनाई थी कि उन्हें शराब से घ्रणा थी और राजा साहब शराब बहुत पीते थे l अत: मालवीयजी ने सम्पदन का उत्तरदायित्व लेने की शर्त यह रखी कि राजा साहब नशे की हालत में उनसे न मिले l यह शर्त उन्होंने स्वीकार कर ली और बहुत दिनों तक निभी l लेकिन एक दिन नशे की हालत में वे मालवीयजी के कार्यालय उनसे मिलने जा पहुंचे l आदर्श और स्वाभिमान को प्रमुख मानने वाले महामना मालवीय स्तीफा देकर वापस लौट आये और लाख कहने पर भी उन्होंने वह उत्तरदायित्व फिर से नहीं स्वीकारा l राजा साहब पर मालवीयजी की इस आदर्शवादिता का इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि उनका वेतन ढाई सौ रूपये मासिक वकालत पढ़ने की छात्रवृति के रूप में उन्हें वे सतत भेजते रहे l
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