श्री लालहादुर शास्त्री ने अपनी निस्पृहता , सरलता , नि:स्वार्थता , निष्कपटता आदि गुणों के कारण अपनी एक अलग ही छाप लोगों पर छोड़ राखी थी l आत्म प्रशंसा से दूर रहते हुए आदर - सत्कार के कार्यक्रम को वे बराबर टाला करते थे l उनके करीब के मित्रों ने पूछा ---- " आखिर आप टालते ही क्यों रहते हो ? : शास्त्री जी ने लाला लाजपतराय के सार युक्त उद्बोधन को दोहराना शुरू किया , जो कभी उनके लिए दिया गया था ------ " एक बहुमूल्य संगमरमर पत्थर जिसका उपयोग गुम्बज के लिए और यत्र - तत्र हुआ है , दूसरा एक साधारण पत्थर , ताजमहल की नींव में उपयोग हुआ है , जिसकी ओर किसी का ध्यान तक नहीं है l हमें जीवन में भी दूसरे प्रकार के पत्थर का अनुकरण करना चाहिए l अपनी प्रसिद्धि , प्रशंसा और आदर - सत्कार से हमेशा दूर रहकर सत्कर्म करते रहना चाहिए l " यही सीख मेरे जीवन में पैठ कर गई और मैं उस नींव के पत्थर का अनुकरण करता रहता हूँ l
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