दो बालक नित्य साथ ही पाठशाला जाया करते थे l एक दिन शाला जाते समय उन्हें अपनी अपनी अपनी शारीरिक शक्ति परखने की सूझी l वे दोनों कुश्ती लड़ने लगे l बलवान बालक जीत गया l कमजोर को पराजय का मुंह देखना पड़ा l इस पर हारे हुए बालक ने कहा --- " तूने कौन सी बहादुरी दिखाई l तेरे जैसा पौष्टिक भोजन मुझे मिलता तो मैं भी तुझे हरा देता l यह बात विजेता के मर्म को बेध गई l उसका विजय का उल्लास तिरोहित हो गया l उसका स्थान ग्लानि ने ले लिया -- वह सोचने लगा --कमजोर को हरा कर मैंने कौनसा श्रेयस्कर काम किया है l मुझे तो उसको अपने जैसा बनाना चाहिए था l ' इस घटना ने उसकी विचार शैली बदल दी l
यही बालक आगे चलकर डाक्टर बना l कमजोर और असहायों की सहायता के लिए अफ्रीका के घने जंगलों में चला गया l यह डाक्टर थे ---- अलबर्ट श्वाइत्जर l इस महान सेवा साधना के कारण वे शान्ति के नोबेल पुरस्कार के अधिकारी व हजारों लोगों के प्रेरणा स्रोत बने l
यही बालक आगे चलकर डाक्टर बना l कमजोर और असहायों की सहायता के लिए अफ्रीका के घने जंगलों में चला गया l यह डाक्टर थे ---- अलबर्ट श्वाइत्जर l इस महान सेवा साधना के कारण वे शान्ति के नोबेल पुरस्कार के अधिकारी व हजारों लोगों के प्रेरणा स्रोत बने l
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