ईश्वर किसी को सम्पदा , विभूति अथवा सामर्थ्य देता है तो निश्चित रूप से उसके साथ कोई न कोई सद्प्रयोजन जुड़ा होता है l मनुष्य को समझना चाहिए कि वह विशेष अनुदान उसे किसी समाज उपयोगी कार्य के लिए ही मिला है l अत: उस पर अपना अधिकार न मानकर सम्पूर्ण समाज का अधिकार मानना चाहिए l जहाँ वह व्यक्तिगत सम्पदा - सामर्थ्य मान लिया जाता है वहीँ वह अहंकार का कारण बन जाता है l यह अहंकार ही व्यक्ति के पतन का कारण बनता है l
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