भर्तहरि ने अपने वैराग्य शतक में लिखा है ------ " तृष्णा बूढ़ी नहीं होती , हम ही बूढ़े होते हैं l भोग नहीं भोगे जाते , हम ही भोग लिए जाते हैं l " शरीर ढल जाता है , इन्द्रियां शिथिल हो जाती हैं लेकिन कल्पनाएँ - मनोभाव उसी दिशा में दौड़ - भाग लगते हैं l कामनाएं - वासनाएं कभी समाप्त नहीं होतीं l "
बूढ़ा आदमी पेड़ के समीप आकर रुका और बोला ---- " अरे , फल नहीं , फूल भी नहीं और पत्ते भी नहीं l क्या हो गया , हर वसंत में तुम्हारी बहार देखते ही बनती थी l "
पेड़ ने लम्बी आह भरी और बोला ---- " काश ! तुमने अपना झुर्री भरा चेहरा देख लिया होता l वसंत ऋतू तो सदा आती - और जाती रहेगी , पर बूढी पीढ़ी को अपना दायित्व पूरा करते हुए नयी पीढ़ी के लिए भी तो स्थान खाली करना होता है , अन्यथा यह स्रष्टि भी बूढी होकर समाप्त हो जाएगी l "
ययाति का उदाहरण बड़ा प्रासंगिक है l उसने सब सुख भोगे l तृष्णा बढ़ती चली गई l देह जवाब दे गई l मृत्यु आने को थी l औरों से पुण्य लेकर समय बढ़ा लिया l वह काल भी समाप्त हो गया l मृत्यु का समय आ गया , काल आ गया , बोला ---- " जवानी किसी और से मांग लो l "
ययाति ने अपने बेटों से भोगने के लिए जवानी मांगी l अन्य बेटों ने तो मना कर दिया l सबसे छोटा बेटा पुरु बोला --- " आप जवानी मुझसे ले लें l जिन इन्द्रियों से आपकी तृष्णा शांत नहीं हुई , हमारी क्या होगी --- आप भोग लें l "
भर्तहरि ने सच कहा है ---- तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णा l
बूढ़ा आदमी पेड़ के समीप आकर रुका और बोला ---- " अरे , फल नहीं , फूल भी नहीं और पत्ते भी नहीं l क्या हो गया , हर वसंत में तुम्हारी बहार देखते ही बनती थी l "
पेड़ ने लम्बी आह भरी और बोला ---- " काश ! तुमने अपना झुर्री भरा चेहरा देख लिया होता l वसंत ऋतू तो सदा आती - और जाती रहेगी , पर बूढी पीढ़ी को अपना दायित्व पूरा करते हुए नयी पीढ़ी के लिए भी तो स्थान खाली करना होता है , अन्यथा यह स्रष्टि भी बूढी होकर समाप्त हो जाएगी l "
ययाति का उदाहरण बड़ा प्रासंगिक है l उसने सब सुख भोगे l तृष्णा बढ़ती चली गई l देह जवाब दे गई l मृत्यु आने को थी l औरों से पुण्य लेकर समय बढ़ा लिया l वह काल भी समाप्त हो गया l मृत्यु का समय आ गया , काल आ गया , बोला ---- " जवानी किसी और से मांग लो l "
ययाति ने अपने बेटों से भोगने के लिए जवानी मांगी l अन्य बेटों ने तो मना कर दिया l सबसे छोटा बेटा पुरु बोला --- " आप जवानी मुझसे ले लें l जिन इन्द्रियों से आपकी तृष्णा शांत नहीं हुई , हमारी क्या होगी --- आप भोग लें l "
भर्तहरि ने सच कहा है ---- तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णा l
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