दुनिया में हम जिसे भी देखते हैं --- पिता - पुत्र , गुरु - शिष्य , संतान , रिश्ते - नाते , जो कोई भी हैं , वे सब हमारे ही कर्मों का परिणाम है l अतीत में किए गए हमारे अपने ही कर्म आज भांति - भांति के रूप धारण कर हमारे सामने हैं l
ऋषियों का कहना है ---- " जैसे हजारों गायों के मध्य बछड़ा अपनी माँ को स्वत: ढूँढ निकालता है , वैसे ही हमारे अपने किये गए कर्म हमको किसी भी योनि में सहजता से ढूँढ निकालते हैं l हमारे कर्म हमारा पीछा नहीं छोड़ते , वे तब तक समाप्त नहीं होते , जब तक हम उन्हें भोग नहीं लेते l "
कर्मफल का विधान सबके लिए एक समान है l
महाभारत के युद्ध पश्चात एक बार अत्यंत व्यथित ह्रदय से धृतराष्ट्र ने वेदव्यास जी से पूछा ---- " भगवन ! यह कैसी विडम्बना है कि मेरे सौ के सौ पुत्र मारे गए और मैं अँधा बूढ़ा बाप जिंदा रह गया l मैंने इस जन्म इतने पाप तो नहीं किए हैं और पूर्व कुछ पुण्य होंगे , तभी मैं राजा बना हूँ l किस कारण से यह घोर दुःख भोगना पड़ रहा है ?
तब वेदव्यासजी ने ध्यान में जाकर उनके पूर्व जन्मों को जाना l उन्होंने धृतराष्ट्र से कहा ---- " पूर्वजन्म में तुम राजा थे और शिकार करने के लिए जंगल में गए l वहां हिरन को देखकर उसके पीछे दौड़े , लेकिन तुम हिरन का शिकार नहीं कर पाए l वह जंगल की झाड़ियों में दिखना बंद हो गया l क्रोध में आकर तुमने वहां आग लगा दी l जिससे वहां उगी घास और सूखे पत्ते जल गए l वहीँ पास में एक सांप का बिल था l उसमे सांप के बच्चे थे जो अग्नि में जलकर मर गए और सरपिनी अंधी हो गई l तुम्हारे उस कर्म का बदला इस जन्म में मिला l इससे तुम अंधे बने हो और तुम्हारे सौ बेटे मर गए हैं l " इस प्रकार जन्म - जन्मांतरों तक हमारे कर्म हमारा पीछा करते हैं l
उचित यही है कि हमें सदा शुभ कर्म निष्काम भाव से करने चाहियें l
ऋषियों का कहना है ---- " जैसे हजारों गायों के मध्य बछड़ा अपनी माँ को स्वत: ढूँढ निकालता है , वैसे ही हमारे अपने किये गए कर्म हमको किसी भी योनि में सहजता से ढूँढ निकालते हैं l हमारे कर्म हमारा पीछा नहीं छोड़ते , वे तब तक समाप्त नहीं होते , जब तक हम उन्हें भोग नहीं लेते l "
कर्मफल का विधान सबके लिए एक समान है l
महाभारत के युद्ध पश्चात एक बार अत्यंत व्यथित ह्रदय से धृतराष्ट्र ने वेदव्यास जी से पूछा ---- " भगवन ! यह कैसी विडम्बना है कि मेरे सौ के सौ पुत्र मारे गए और मैं अँधा बूढ़ा बाप जिंदा रह गया l मैंने इस जन्म इतने पाप तो नहीं किए हैं और पूर्व कुछ पुण्य होंगे , तभी मैं राजा बना हूँ l किस कारण से यह घोर दुःख भोगना पड़ रहा है ?
तब वेदव्यासजी ने ध्यान में जाकर उनके पूर्व जन्मों को जाना l उन्होंने धृतराष्ट्र से कहा ---- " पूर्वजन्म में तुम राजा थे और शिकार करने के लिए जंगल में गए l वहां हिरन को देखकर उसके पीछे दौड़े , लेकिन तुम हिरन का शिकार नहीं कर पाए l वह जंगल की झाड़ियों में दिखना बंद हो गया l क्रोध में आकर तुमने वहां आग लगा दी l जिससे वहां उगी घास और सूखे पत्ते जल गए l वहीँ पास में एक सांप का बिल था l उसमे सांप के बच्चे थे जो अग्नि में जलकर मर गए और सरपिनी अंधी हो गई l तुम्हारे उस कर्म का बदला इस जन्म में मिला l इससे तुम अंधे बने हो और तुम्हारे सौ बेटे मर गए हैं l " इस प्रकार जन्म - जन्मांतरों तक हमारे कर्म हमारा पीछा करते हैं l
उचित यही है कि हमें सदा शुभ कर्म निष्काम भाव से करने चाहियें l
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