पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने वाड्मय -- ४४ में पृष्ठ 1.2 पर लिखा है ---- ' सच पूछा जाये तो भारतवर्ष की पराधीनता का एक बड़ा कारण यहाँ के शासक वर्ग का झूठा अहंकार और जांत - पांत का भेदभाव ही था l इससे उनकी एकता नष्ट हो गई और वे छोटे - छोटे टुकड़ों में बंटकर तीन - तेरह हो गए l उनकी देखा - देखी उनकी प्रजा में भी ऊँच - नीच और छोटी - बड़ी जाति का विष फैल गया और समस्त देश एक संगठित शक्ति होने के बजाय छोटे - छोटे भागों में विभाजित लोगों की भीड़ की तरह हो गया l ऐसी दशा देखकर विदेशियों का आकर्षित होना स्वाभाविक ही था l वे धर्म , आचार - विचार , वेश , भाषा आदि सब द्रष्टियों से समान थे और इस आधार पर पूर्णत: संगठित थे l जब उन्होंने देखा कि भारतवर्ष जैसा सम्रद्ध तथा सब प्रकार के साधनों से संपन्न देश ऐसे असंगठित और आपस में फूट रखने वाले लोगों के अधिकार में है तो उन्होंने उसे बलपूर्वक छीन लिया l यदि ऐसा न होता तो कोई कारण न था कि कुछ हजार आक्रमणकारी करोड़ों की आबादी वाले देश को कुछ वर्षों में पद - दलित कर के यहाँ अपना शासन स्थापित कर सकते l बिहार के कुछ नगरों के लिए तो इतिहासकारों ने यहाँ तक लिखा है कि बखित्यार खिलजी ने केवल अठारह सवारों को लेकर ही कब्जा कर लिया था l "
No comments:
Post a Comment