सच्चे और ईमानदार व्यक्तियों को यदि दीन - हीन देखा जाता है तो उसके पीछे एक कारण यह भी है कि वे संगठित नहीं है और उनमे जागरूकता की , विवेक की कमी है इस कारण उनका लाभ बुरे लोग उठा लेते हैं l बुरे व्यक्ति उनका लाभ उठाते हैं , शोषण करते हैं l यदि ऐसा सच्चा व्यक्ति कभी किसी मुसीबत में फंस जाये तो कभी उसकी मदद नहीं करते , बल्कि अपना स्वार्थ सिद्ध हो जाने के बाद धक्का और दे देते हैं l इसलिए हमें जागरूक होना होगा कि कहीं हमारा लाभ गलत व्यक्ति तो नहीं उठा रहे l
इस कटु सत्य को बताने वाली घटनाओं से हमारा इतिहास भरा पड़ा है l इतिहास इस बात का साक्षी है कि राजपूत राजा चरित्र , वीरता , साहस , शौर्य और आन - बान में मुगलों से हजार गुना अच्छे थे l उनकी वीरता , कर्तव्य परायणता और जाँबाजी के किस्सों से इतिहास के पृष्ठ रंगे पड़े हैं किन्तु यही सब कुछ नहीं होता l उसके सदुपयोग और एकता की भावना का उनमे सर्वथा अभाव था l
राजपूतों के ' शौर्य ' और ' मर मिटना ' ये सब बातें उनके अहंकार को बढ़ाने वाली थीं l उनके इस मिथ्याभिमान और अविवेक का लाभ मुगलों ने उठाया था l मुग़ल राज्य की नीवें इन्ही राजपूत राजाओं के बल पर खड़ी रहीं थी l राजपूत राजाओं से मुगलों ने दोस्ती की थी और इस दोस्ती के लिए राजपूत राजा , मुग़ल सम्राट के कहने पर विभिन्न क्षेत्रों में युद्ध के लिए जाते थे , अपनों से ही युद्ध करते थे l इससे राजपूत राजाओं का गौरव कम हुआ और पराधीनता का कलंक भी भारत भूमि को धोना पड़ा l केवल महाराणा प्रताप , राणा हम्मीर और महाराणा राजसिंह ने देश के गौरव को बनाये रखा l
उस काल के अधिकांश हिन्दू राजाओं की सत्ता , सामर्थ्य , बल , पौरुष व सैन्य शक्ति या तो आपस में लड़ने - झगड़ने और मिथ्या मान - अपमान में उलझकर परस्पर ईर्ष्या - द्वेष उपजाने में ही खर्च होती रही और उसका लाभ दूसरे लोगों द्वारा उठाया जाता रहा l
इस कटु सत्य को बताने वाली घटनाओं से हमारा इतिहास भरा पड़ा है l इतिहास इस बात का साक्षी है कि राजपूत राजा चरित्र , वीरता , साहस , शौर्य और आन - बान में मुगलों से हजार गुना अच्छे थे l उनकी वीरता , कर्तव्य परायणता और जाँबाजी के किस्सों से इतिहास के पृष्ठ रंगे पड़े हैं किन्तु यही सब कुछ नहीं होता l उसके सदुपयोग और एकता की भावना का उनमे सर्वथा अभाव था l
राजपूतों के ' शौर्य ' और ' मर मिटना ' ये सब बातें उनके अहंकार को बढ़ाने वाली थीं l उनके इस मिथ्याभिमान और अविवेक का लाभ मुगलों ने उठाया था l मुग़ल राज्य की नीवें इन्ही राजपूत राजाओं के बल पर खड़ी रहीं थी l राजपूत राजाओं से मुगलों ने दोस्ती की थी और इस दोस्ती के लिए राजपूत राजा , मुग़ल सम्राट के कहने पर विभिन्न क्षेत्रों में युद्ध के लिए जाते थे , अपनों से ही युद्ध करते थे l इससे राजपूत राजाओं का गौरव कम हुआ और पराधीनता का कलंक भी भारत भूमि को धोना पड़ा l केवल महाराणा प्रताप , राणा हम्मीर और महाराणा राजसिंह ने देश के गौरव को बनाये रखा l
उस काल के अधिकांश हिन्दू राजाओं की सत्ता , सामर्थ्य , बल , पौरुष व सैन्य शक्ति या तो आपस में लड़ने - झगड़ने और मिथ्या मान - अपमान में उलझकर परस्पर ईर्ष्या - द्वेष उपजाने में ही खर्च होती रही और उसका लाभ दूसरे लोगों द्वारा उठाया जाता रहा l
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