श्रीमदभागवत पुराण में गजेन्द्रमोक्ष नाम से एक कथा आती है कि क्षीरसागर में दस हजार योजन ऊँचे त्रिकूट नामक पर्वत की तलहटी में गजेंद्र ( हाथी ) अपने परिवार सहित रहता था l एक बार वह निकटवर्ती मनोरम तालाब में जलक्रीड़ा कर रहा था कि पूर्वजन्म की दुश्मनी के कारण ग्राह ( मगरमच्छ ) ने गजेंद्र को पकड़ लिया l दोनों ही बलशाली होने के कारण एक हजार वर्ष तक लड़ते रहे l अंत में गजेंद्र का बल क्षीण होने लगा , तब उसने भगवान श्रीहरि की स्तुति की , जो उसे पूर्वजन्म की स्मृति के कारण इस जन्म में भी कंठस्थ थी l गजेंद्र की आर्त पुकार सुनकर भगवान श्रीहरि गरुड़ पर सवार होकर शीघ्र उसके समीप उपस्थित हुए और अपने सुदर्शन चक्र से ग्राह का मुंह फाड़कर गजेंद्र को उससे मुक्त कराया l इस पौराणिक कथा में ग्राह लोभ एवं भय --- दोनों का प्रतीक है जिसके चंगुल में मनुष्य फंस जाता है और निकल नहीं पाता है , लेकिन भगवान को निरंतर सहायता के लिए पुकारने से ही हम इस लोभ और भय के चंगुल से निकल पाते हैं l
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