श्रीमद भगवद्गीता में श्री भगवान ने अभिमान या घमंड को आसुरी लक्षण बताया है l घमंड उसका होता है , जो उसके पास है l जैसे किसी के पास अपार धन - सम्पदा है तो उसे उसका घमंड हो जाता है l पुराण में कथा है कि स्वर्ण में अर्थात अपार धन संपदा में कलियुग का निवास होता है और जो उसे धारण करता है कलियुग उसकी बुद्धि को , उसकी मानसिकता को विकृत कर देता है l जैसे राजा परीक्षित स्वर्ण मुकुट पहन कर जंगल में भ्रमण करने अथवा शिकार को गए l स्वर्ण मुकुट में कलियुग ने प्रवेश कर लिया जिससे राजा की बुद्धि भ्रष्ट हो गई और उन्होंने ऋषि जो समाधि में थे उनके गले में मृत साँप डाल दिया l जब वे वापस महल में आये और स्वर्ण मुकुट उतार कर रखा तब उनकी बुद्धि स्थिर हुई , उन्हें होश आया कि उनसे कितना गलत काम हो गया , लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी , ऋषि पुत्र ने उन्हें श्राप दे दिया था l स्वर्ण मुकुट तो उतार के रखा जा सकता है लेकिन वर्तमान समय में जो धन संपन्न है , वह हर पल धन वैभव से घिरा हुआ , उसी के ढेर पर बैठा होता है l दोष व्यक्ति का नहीं है , कलियुग को अपना स्थान मिल जाता है , वह बुद्धि को कुछ इसी तरह की बना देता है जैसी राजा परीक्षित की स्वर्ण मुकुट धारण करने से हो गई थी l फिर वह अपने स्तर के अनुसार समाज , राष्ट्र अथवा समूचे संसार को अपनी इस बुद्धि से प्रभावित कर लेता है l विवेकहीनता और दुर्बुद्धि ही सारे संकट पैदा करती है l महात्मा गाँधी ने गीता को अपने जीवन में आत्मसात किया l सादगी का जीवन जिया और अपनी हस्ती का कभी अभिमान नहीं किया l उन्होंने उद्दोगपतियों को भी यही सलाह दी कि वे स्वयं को इस सम्पति का ट्रस्टी समझें और अपनी आवश्यकता को पूरा कर शेष धन लोक कल्याण में लगाएं l गाँधी जी के आचरण का ही प्रभाव था कि उस समय के सम्पत्तिवानों ने अपना जीवन , धन सब कुछ देश हित में समर्पित किया l धन का सदुपयोग कर के ही कलियुग के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है l
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