पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- ' विश्व के शक्ति भंडार में आत्मबल सर्वोपरि है l अध्यात्मबल से आत्मबल उभरता है l अध्यात्मबल का संपादन कठिन नहीं , वरन सरल है l उसके लिए आत्मशोधन एवं लोकमंगल के कार्यों को जीवनचर्या का अंग बना लेने भर से काम चलता है l व्यक्तित्व में पैनापन और प्रखरता का समावेश इन्ही दो आधारों पर होता है और इतना होने पर दैवी अनुग्रह अनायास बरसता है और आत्मबल भीतर से उभरता है l ' आचार्य श्री लिखते हैं ---- ' केवट , शबरी , अंगद , नल - नील , रीछ - वानर , सुग्रीव की निज की भौतिक सामर्थ्य बहुत कम थी , पर वे ईश्वरीय शक्ति से जुड़ गए और अपने में देवत्व की मात्रा बढ़ा लेने पर ही इतने मनस्वी बन सके l " चन्द्रगुप्त जब विश्व विजय की योजना सुनकर सकपकाने लगे तो चाणक्य ने कहा ---- " तुम्हारी दासी -पुत्र वाली मनोदशा को मैं जानता हूँ l उससे ऊपर उठो और चाणक्य के वरद पुत्र जैसी भूमिका निभाओ l " छत्रपति शिवजी जब अपने सैन्यबल को देखते हुए असमंजस में थे कि इतनी बड़ी लड़ाई कैसे लड़ी जाएगी , तो समर्थ रामदास ने उन्हें भवानी के हाथों अक्षय तलवार दिलाई थी और कहा था ---- " तुम छत्रपति हो गए , पराजय की बात ही मत सोचो l " बड़े - बी अड़े कार्य देवत्व की शक्ति के बिना असंभव हैं l
30 September 2021
29 September 2021
WISDOM ------
भक्ति में जाति का नहीं , हृदय का स्थान होता है , यही वजह है कि मजहब की दृष्टि से मुसलमान होते हुए भी अब्दुल रहीम खानखाना कृष्ण के परम भक्त थे l बादशाह अकबर रहीम दास जी को बहुत सम्मान देते थे l अकबर के पुत्र जहांगीर ने रहीम को बादशाह के विरुद्ध विश्वासघात करने में साथ देने का प्रलोभन दिया कि बादशाह बनने के बाद वह उन्हें मंत्री पद सौंपेगा l रहीम ने यह बात नहीं मानी और जब जहांगीर बादशाह बना तो उसने रहीम दास जी से भारी बदला लिया l उसने रहीम के दोनों पुत्रों की हत्या कर के दरवाजे के पास फिंकवा दिया l रहीम के सारे अधिकार छीन लिए और उन्हें दर -दर की ठोकरें खाने को छोड़ दिया लेकिन रहीम तो भगवान के भक्त थे , सुख - दुःख से परे ! वे तब भी भक्त थे जब अपरिमित संपदाओं के स्वामी थे और बादशाह के दरबार में श्रेष्ठ लोगों को बेशकीमती रत्नों का उपहार दिया करते थे , और अब इस स्थिति में भी मस्ती में डूबे रहते थे , जब उनके पास कुछ नहीं था l एक दिन रहीम अपने जीवकोपार्जन हेतु बैठे थे और सामने बेचने के लिए चीजें पड़ी हुई थीं l उसी समय जहांगीर अपनी सेनाओं के साथ वहां से गुजरा और उन पर कटाक्ष किया ----- " देखा रहीम ! मेरे साथ न होने का परिणाम l " रहीम को तनिक भी दुःख नहीं था अपनी करनी पर और कोई शिकवा भी नहीं था बादशाह के इस कटाक्ष व अपमान पर l इकहत्तर वर्ष की उम्र में बड़े ही फक्र के साथ इस नश्वर देह को छोड़ने से पूर्व उन्होंने अनेक उल्लेखनीय कार्य किए , उन्होंने ज्योतिष शास्त्र में खेत खोतुकम एवं द्वाविशद योगावली की रचना की , इसके अतिरिक्त उन्होंने अनेक महान कार्य किये l ऐसी मान्यता है की अंतिम समय में उन्होंने अपने इष्ट भगवान कृष्ण के सामने ही देह का त्याग किया और उन्ही में विलीन हो गए l
28 September 2021
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं ---- ' गुरु तीन तरह के होते हैं l इनमे पहली श्रेणी है शिक्षक की , जो बौद्धिक ज्ञान देता है , इसके पास तर्कों का , शब्दों का मायाजाल होता है l बोलने में प्रवीण ऐसे लोग कई बार अपने आप को गुरु के रूप में प्रस्तुत करते हैं l उनके कथा -प्रवचन , लच्छेदार वाणी अनेकों को अपनी ओर आकर्षित करती है l ऐसों का मंतव्य एक ही होता है कि लोग उनकी सुने , उनकी पूजा करें l " ऐसे ही एक गुरु की कथा आचार्य श्री सुनाते हैं ------- एक उच्च शिक्षित गुरु , किसी ख्यातिप्राप्त संस्था के संचालक थे l देश - विदेश में उन्हें प्रवचन के लिए आमंत्रित किया जाता था l एक बार वे विदेश में किसी पागलखाने में गए l वहां उन्हें सुनने वालों में कर्मचारियों और चिकित्सकों के साथ पागलखाने के पागल भी थे l प्रवचन करते समय इन गुरु महोदय को उस समय भारी अचरज हुआ , जब उन्होंने देखा कि पागलखाने के सारे पागल उन्हें बड़े ध्यान से सुन रहे हैं l उन्होंने इस संबंध में अधीक्षक से कहा कि वे जरा इन पागलों से पूछकर बताएं कि उन्हें मेरी कौन सी बात पसंद आई l उनके निर्देशानुसार उन्होंने पागलों से बात की और उनके पास आए l गुरु महोदय में भारी उत्सुकता थी , बोले बताइये न क्या बातें हुईं l " अधीक्षक थोड़ा हिचकिचाते हुए बोले ----- " महोदय ! आप मुझे क्षमा करें , ये सभी पागल कह रहे थे कि ये प्रवचन करने वाले तो बिलकुल हम लोगों जैसे हैं , फरक सिर्फ इतना है कि हम लोग यहाँ भीतर हैं और ये बाहर घूम रहे हैं l " आचार्य श्री कहते हैं दूसरे प्रकार के गुरु वे होते हैं जिन्हे भगवान अपने प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त करते हैं जैसे रामकृष्ण परमहंस , रमण महर्षि , महर्षि अरविन्द l और तीसरी श्रेणी में ईश्वर स्वयं हमारे गुरु होते हैं l
WISDOM ------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ------ " ' दक्ष ' को देवाधिदेव महादेव ने उसकी कुमार्गगामिता का दंड उसका मानवीय सिर काटकर , बकरे का सिर लगाकर दिया था l दक्ष की चतुरता का वास्तविक स्वरुप यही था l आज भी ' दक्षों ' ने ---- चतुरों ने यही कर रखा है l ये तथाकथित चतुर लोग समाज के मूर्द्धन्य बने बैठे तिकड़म को ही अपना आधार बनाये हुए हैं l दूसरों के सहारे वे छल - बल से आगे बढ़ते हैं , ऊँचा उठते हैं l तप और त्याग का नाम भी नहीं है l ऐसे मूर्द्धन्य लोगों का बाहुल्य व्यक्ति और समाज की आत्मा को कुचल - मसल रहा है l यह स्थिति महाकाल को असह्य है l आज का मानवीय चातुर्य , जो सुविधा - साधनों के अहंकार में अपनी वास्तविक राह छोड़ बैठा है , वैसी ही दुर्गति का अधिकारी बनेगा , जैसा की दक्ष का सारा परिवार बना था l " आचार्य श्री लिखते हैं ---- " कभी - कभी ऐसा समय आता है कि छूत की बीमारी की तरह अनाचार भी गति पकड़ लेता है और अपने आप अमर बेल की तरह बढ़ने लगता है l गलतियां दोनों ओर से होती हैं -- अनाचारी अपनी दुष्टता से बाज नहीं आता है और सताए जाने वाले कायरता , भीरुता अपनाकर टकराने की नीति नहीं अपनाते l तब स्रष्टा को भी क्रोध आता है और जो मनुष्य नहीं कर पाता , उसे स्वयं करने के लिए तैयार होता है l " मनुष्य सन्मार्ग पर चले अन्यथा शिवजी का तृतीय नेत्र खुलने और भगवान कृष्ण के हाथ में सुदर्शन चक्र आने में देर नहीं लगती l
27 September 2021
WISDOM
मधुसूदन सरस्वती भारत के ऐसे प्रकांड पंडितों में गिने जाते हैं , जिनने काशीधाम में बैठकर सारी विश्व - वसुधा को अपने ज्ञान और भक्ति से प्रभावित किया l उनने वेदांत का अध्ययन किया l ' अद्वैत - सिद्धि ' नामक उनका ग्रन्थ बड़ा प्रसिद्ध है l वे यात्रा पर थे , अपने गुरु विश्वेश्वर सरस्वती के आदेश पर यमुना तट पर आसन जमाया l इस बीच एक अलौकिक घटना घटी l --- सम्राट अकबर की राजमहिषी शूल रोग से बहुत त्रस्त थीं l एक रात उन्होंने स्वप्न देखा कि यमुना के किनारे एक संन्यासी तप कर रहे हैं l उनकी औषधि मिलते ही वे स्वस्थ हो गईं l उनने सम्राट को बताया l अकबर ने पता लगाया , समाचार सही था l एक तरुण तपस्वी चारों ओर से बालू से ढका तप कर रहा था l राजमहिषी वहां गईं और अपने रोग के बारे में मधुसूदन सरस्वती को बताया l वे बोले ---- " माँ ! तुम घर जाओ , तुम शीघ्र ही रोगमुक्त हो जाओगी l " ऐसा ही हुआ , भेंट में मिली दौलत उन्होंने स्वीकार नहीं की l इसके बदले में हिन्दू संन्यासियों पर मुस्लिमों के बढ़ते अत्याचार को रोकने व संन्यासियों की रक्षा करने की बात कही l इसके बाद शासन ने उनकी रक्षा की और नागा संन्यासियों ने आत्मरक्षा का प्रशिक्षण मधुसूसन के मार्गदर्शन में लिया l
26 September 2021
WISDOM -------
' भगवान जिसकी रक्षा करते हैं वह व्यक्ति बिना किसी रक्षा के साधनों के भी जीवित है और उनके द्वारा अरक्षित व्यक्ति सारी सुरक्षा के बाद भी जीवित नहीं रहता , तभी तो वन में छोड़ा हुआ अनाथ भी जीवित रहता है , जबकि घर पर हर प्रकार की देख -रेख एवं बचाव के प्रयत्नों के उपरांत भी व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त होता है l '