विधि का विधान अटल है , कर्म की गति को कोई भी नहीं बदल सकता , महाभारत युद्ध एक सुनिश्चित विधान था , इसे टालने के लिए स्वयं भगवान कृष्ण शांतिदूत बनकर दुर्योधन के राजप्रासाद में पहुंचे l उस काल में विदुर जैसे नीतिज्ञ , भीष्म के समान ज्ञानी एवं वीर , कुंती , गांधारी , द्रोपदी जैसी पतिव्रताएँ और अनेक योगी , तपस्वी थे l सबके सम्मिलित प्रयास के बावजूद युद्ध टाला न जा सका l ऋषियों का कहना है --- चरम पुरुषार्थ के बाद भी यदि अनहोनी न टले तो उसे नियंता का विधान कहते हैं l युद्ध उस काल का विधान था और भगवान श्रीकृष्ण को बिना अस्त्र -शस्त्र उठाए उसे संचालित करना था l इस युद्ध में कौरव पक्ष के सभी महारथी मारे गए l गांधारी शिव भक्त थीं ,सारा जीवन आँखों पर पट्टी बांधकर साधना करती रहीं , कभी गलत का साथ नहीं दिया लेकिन सौ पुत्रों के मारे जाने की पीड़ा उनके हृदय में थी l जब श्रीकृष्ण उन्हें सांत्वना देने पहुंचे तो बोलीं ---- " कृष्ण ! तुम चाहते तो महाभारत रोक सकते थे , तुम सर्वसमर्थ थे l " श्रीकृष्ण बोले --- "काल के विधान को , कर्म की गति को कोई भी नहीं बदल सकता l अनीति को अधर्म को मिटना ही था , यही विधि का विधान था l " गांधारी को संतोष न हुआ और उसने कृष्ण को शाप दे दिया कि जैसे उसके कौरव वंश का अंत हुआ वैसे ही कृष्ण के यादव कुल का भी अंत होगा l " गांधारी का शाप फलित हुआ l यादवों की लड़ाई में श्रीकृष्ण का सारा कुल नष्ट हो गया l भगवान कृष्ण अपने ही वंश को लड़ते -मरते -कटते शांत होकर देखते रहे l भ्राता बलराम ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की , परन्तु भगवान कृष्ण ने कहा कि यही विधान है , इस वंश का अंत होगा और द्वारका समुद्र के गर्भ में समा जाएगी , और यही हुआ l इस कथा में महत्वपूर्ण बात यह है कि संसार में जो भी घटनाएं घटित होती है , वह सब ईश्वरीय विधान है , लेकिन इन घटनाओं का कोई निमित्त होता है l श्रीकृष्ण के कुल के नाश के लिए काल ने गांधारी को निमित्त बना दिया l उसके जीवन भर की तपस्या इस शाप के माध्यम से निकल गई l आज भी संसार में विभिन्न उत्थान -पतन की , अच्छी - बुरी घटनाएं घटित होती हैं , हम जागरूक रहें और सोच -समझ कर कर्म करें , हम किसी के पतन का , किसी बुरी घटना का निमित्त न बनें l ईश्वर हमारा चयन किसी के उत्थान के लिए , संसार में श्रेष्ठ कार्यों को अंजाम देने के लिए हमें निमित्त बनाए l
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