पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' कृतध्नों और विश्वासघातियों का वर्ग इस युग में जिस तेजी से पनपा है , उतना संभवत: इतिहास में इससे पहले कभी देखा नहीं गया l आसुरी तत्व उत्पात मचाते हैं , कुछ ईर्ष्यालु हैं , जिन्हें अपने अतिरिक्त किसी अन्य का यश , वर्चस्व सहन नहीं होता l बिच्छू अपनी माँ के पेट का मांस खाकर ही बढ़ते और पलते हैं , माता का प्राण- हरण करने के उपरांत ही जन्म धारण करते हैं l ' महर्षि दयानन्द सरस्वती के जीवन का प्रसंग है ---- उनके पास एक ब्राह्मण आया और उसने एक पान भेंट किया l स्वामी जी ने सहज भाव से उसे खा लिया l उनने ब्राह्मण से कुछ कहा तो नहीं , पर पान के स्वाद से उन्हें आभास हो गया कि अवश्य इसमें विष होगा l और वह वास्तव में विष ही था l इससे पूर्व की प्रतिक्रिया होती , वे बाहर गए , पान थूका और गंगा में डुबकी लगाकर योग कराया कर वापस आ गए l विष का प्रभाव उन पर नहीं हुआ , पर यह बात छिपी न रही l उनका एक मुस्लिम भक्त तहसीलदार था , उसने ब्राह्मण को पकड़कर कारागार में डाल दिया और स्वामीजी को बताने आया l स्वामीजी ने उससे कहा --- " तुमने मेरे कारण एक ब्राह्मण को कैद में डाल दिया l मैं तो मुक्त करने आया हूँ l तुम मेरे कारण लोगों को बंधन में डाल रहे हो l यह मेरे उसूलों के खिलाफ है l" तहसीलदार यह सोचकर आया था कि स्वामीजी प्रसन्न होंगे , पर उनकी क्षमाशीलता - रूहानी व्यक्तित्व देखकर निहाल हो गया l चरणों में गिरकर क्षमा मांगी और ब्राह्मण को मुक्त कर दिया l
No comments:
Post a Comment