पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " यदि दृष्टिकोण का परिष्कार न हो तो हमारा धार्मिक क्षेत्र भी नाकारा होता चला जायेगा , निहित स्वार्थ इससे अपना फायदा उठाएंगे और बेचारे भावुक लोग बेमौत मारे जायेंगे l फिर हमारा धार्मिक क्षेत्र धूर्तों और मूर्खों की ऐसी जोड़ी बनेगा कि ' राम मिलाई जोड़ी , एक अँधा - एक कोढ़ी ' की उक्ति चरितार्थ होगी l " मनुष्यों से मिलकर समाज बना है , समाज से मिलकर राष्ट्र का निर्माण हुआ है l यदि नैतिकता नहीं है , चरित्र अच्छा नहीं है तब धीरे - धीरे राष्ट्र को ऊँचा उठाने वाले एक - एक स्तम्भ --- शिक्षा , चिकित्सा , धर्म , भाषा , संस्कृति सब धराशायी होने लगते हैं l इसलिए आचार्य श्री ने लिखा है------ ' हमको बड़ी फैक्ट्रियाँ नहीं बनानी हैं l हमको बड़े इनसान बनाने हैं l
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