पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- 'धन का आकर्षण बड़ा जबरदस्त है l जब लोभ सवार होता है , तो मनुष्य अँधा हो जाता है और पाप - पुण्य में कुछ भी फर्क नहीं देखता है l धन - सम्पदा पाने के लिए वह बुरे से बुरे कर्म करने पर उतारू हो जाता है और स्वयं भी उस पाप के फल से नष्ट हो जाता है l आचार्य श्री लिखते हैं ---- ' लोभ आते ही अर्थात अन्यायपूर्वक द्रव्य लेने की इच्छा होते ही पाप की भावनाएं बढ़ती हैं , क्योंकि पाप का बाप लोभ है l धन जीवन के लिए बहुत जरुरी है लेकिन पैसा बढ़ने के साथ - साथ लोगों का ईमान , लोगों का दृष्टिकोण और चिंतन भी बढ़ना चाहिए l यदि दृष्टिकोण का परिष्कार न हुआ , लोगों के हृदय में संवेदना और ईमान नहीं है तो यह विनाश का कारण होगा l गरीबी से ज्यादा अमीरी महँगी पड़ सकती है l ------- गरीबी की बुराइयाँ केवल उस गरीब परिवार के लिए ही कष्टदायी होती हैं लेकिन अमीरी की जो बुराइयाँ हैं वे न केवल समाज बल्कि सारे संसार के विनाश का कारण बन जाती हैं l धन और बुद्धि --यदि इन दोनों का सदुपयोग न हो तो ये दोनों मिलकर संसार में तबाही ला सकती हैं l
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