कलियुग का सबसे बड़ा लक्षण है कि इस युग में मनुष्य पर दुर्बुद्धि का प्रकोप होता है , उसकी आँखों पर अविवेक का पर्दा पड़ा रहता है l जिस के साथ प्रेम से रहना चाहिए , उससे वह वैर रखता है और जिससे दूर रहना चाहिए , उसके पीछे भागता है l इतिहास में यह बात स्पष्ट है कि अंग्रेजों ने ' फूट डालो और राज्य करो ' की नीति से विशाल भारत पर लम्बे समय तक राज्य किया l अंग्रेजों ने हिन्दू और मुसलमान दोनों पर हुकूमत की , गुलामी दोनों ने ही सहन की लेकिन आश्चर्य ! दोनों को अंग्रेजों से कोई शिकायत नहीं है l यह हमारी दुर्बुद्धि थी , हम ' कान के कच्चे ' थे , आपस में लड़ मरे और वे तमाशा देखते रहे और अब तक लड़ रहे हैं l यदि हमारे पास सद्बुद्धि होती तो कहते यह हमारा घरेलु मामला है , हमें बहकाओ मत l जैसे महाभारत में युधिष्ठिर ने कहा था -- हम कौरव , पांडव आपस में चाहे झगड़ लें लेकिन तीसरे पक्ष के सामने हम एक सौ पांच हैं l लेकिन ईर्ष्या , द्वेष , लालच , महत्वाकांक्षा , ये सब दुर्गुण व्यक्ति को विवेकहीन कर देते हैं , उसे सही - गलत की समझ ही नहीं रहती l अंग्रेजियत हम पर इतनी हावी है कि यह फूट डालने वाली नीति अब राजनीति के साथ परिवारों पर भी हावी हो गई है l ईर्ष्या , द्वेष के कारण लोग किसी को सुख - चैन से नहीं देख सकते l किसी की सम्पति पर कब्ज़ा करने के लिए , अपना कोई स्वार्थ सिद्ध करने के लिए लोग दूसरों के परिवारों में , रिश्ते में फूट डलवा देते हैं , जहर का बीज बो देते हैं l दुर्बुद्धि यहाँ भी वैसी ही है , जिन रिश्तों में फूट डाली , वे बिना सोचे - समझे आपस में वैर रखते हैं और जिसने फूट डलवाने का घृणित काम किया उसके प्रति निष्ठा रखते हैं l हमें यदि अपने परिवार , अपनी संस्कृति को बचाना है तो अपने विवेक को जाग्रत करना होगा , सद्बुद्धि जरुरी है और इसे जाग्रत करने का एक ही तरीका है ---- गायत्री मन्त्र l
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