पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने अपने विचारों से , लघु कथाओं के माध्यम से हमें जीवन जीने की कला सिखाई है l इस कला की थोड़ी भी समझ आ जाने से हम कैसी भी परिस्थिति हो तनाव रहित और सुकून की जिंदगी जी सकते हैं ------ ' एक भेड़िया बहुत दुष्ट स्वभाव का था l भलमनसाहत उसे आती ही न थी l वह सभी से वैर भाव रखता था l एक दिन भेड़िये के गले में किसी जानवर की हड्डी अटक गई l दम घुटने लगा , प्राण निकलने लगे तो दौड़कर सारस के पास पहुंचा और बोला ---- तुम्हारा अहसान मैं कभी नहीं भूलूंगा , तुम्हारी मदद करूँगा , तुम अपनी लम्बी चोंच से मेरे गले में फँसी हड्डी निकल दो l सारस को दया आ गई , उसने वैसा ही किया और हड्डी निकाल दी l बहुत दिन बाद सारस को कुछ काम पड़ा , वह सहायता के लिए भेड़िये के पास गया l भेड़िये के मना करने पर उसने पिछले अहसान और उसके वायदे की याद दिलाई l भेड़िये ने कुटिलता से कहा ---- " तुम्हारी गर्दन मेरे मुँह में जाने के बाद भी साबुत निकल आई , वही अहसान क्या कम था ? " सारस ने अपने परिवार के सभी लोगों को बुलाकर समझाया कि दुष्ट की सहायता करके उससे किसी प्रकार के सद्व्यवहार की आशा नहीं करनी चाहिए l दुष्ट के साथ न तो मित्रता रखनी चाहिए और न ही उससे दुश्मनी मोल लेनी चाहिए l उससे तो दूर रहे l
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