संसार में अशांति और तनाव तब तक बना रहेगा जब तक धन - वैभव के आधार पर व्यक्ति और किसी राष्ट्र का मूल्यांकन किया जायेगा l धन जीवन के लिए जरुरी है , लेकिन इसे ही सब कुछ समझने की भूल ने मनुष्य की बुद्धि को विपरीत कर दिया है l अब वह अपना ही दुश्मन बन गया है , अपने ही द्वारा किये गए विकास को नष्ट कर के पत्थर - युग में जाने की तैयारी कर रहा है , -- बात उन दिनों की है जब स्वामी विवेकानंद की ख्याति पूरी दुनिया में फ़ैल चुकी थी l एक दिन स्वामी जी के एक अमेरिकी शिष्य ने उनसे कहा --- " मैं आपके गुरु को देखना चाहता हूँ l मैं जानना चाहता हूँ कि आखिर कैसा होगा वह व्यक्ति , जिसने आप जैसे शिष्य को तैयार किया ? " स्वामी जी ने उस अमेरिकी शिष्य को रामकृष्ण परमहंस का फोटो दिखाया l स्वामी रामकृष्ण परमहंस के फोटो के देखकर वह बोला ---- " मुझे ऐसा लगता था कि आपके गुरु अत्यंत विद्वान् व सभ्य होंगे , परन्तु फोटो से मुझे ऐसा प्रतीत नहीं होता l " शिष्य की बात सुनकर स्वामी जी बोले ---- " तुम्हारे देश में सभ्य पुरुषों का निर्माण दरजी करता है , जबकि हमारे देश में सभ्य पुरुषों का निर्माण आचार - विचार करते हैं l इस कसौटी पर कसकर बताओ कि तुम्हारे मुल्क के सूट - बूटधारी जेंटलमैन सभ्य हैं या मेरे गुरु परमहंस ? " वह अमेरिकी शिष्य स्वामीजी की इस व्याख्या को सुनकर निरुत्तर हो गया और उसने स्वीकार किया कि स्वामीजी के उदाहरण से उसे व्यक्तियों को परखने की नई दृष्टि मिली l
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