आज संसार में इतनी अशांति , इतना तनाव इसलिए है क्योंकि लोग ईश्वर को भूल गए हैं l अब लोग विभिन्न कर्मकांड कर के अपने आस्तिक होने का दावा तो करते हैं लेकिन सच तो यह है कि ईश्वर की शक्ति का लोगों को एहसास ही नहीं है , वे उसे अपनी स्वार्थ पूर्ति का साधन समझते हैं l मनुष्य के इस अहंकार से प्रकृति नाराज हो जाती है और प्रकृति का क्रोध हमें संसार में विभिन्न रूपों में दिखाई पड़ता है l एक कथा है ---- एक व्यक्ति एक मंदिर में बहुत जोर -जोर से रामायण पाठ कर रहा था l एक संत बैठे सुन रहे थे और बहुत प्रसन्न हो रहे थे कि इस समय भी ऐसे भक्त हैं l जब वह पाठ कर के उठा तो संत ने पूछा --- " बेटा ! क्या रोज पाठ करते हो ? ' उसने चरण छूकर कहा --- " नहीं महाराज , रोज तो समय नहीं मिलता , मंगलवार को करता हूँ l आज कचहरी में पेशी है , जल्दी में हूँ , आकर बात करूँगा l " संत ने पूछा --- " कचहरी में , क्या किसी से कोई मुकदमा चल रहा है ? " वह बोला --- " हाँ , असल में मेरा भाई है न , उस दुष्ट ने मेरी चार गज जमीन दबा ली , आज उसकी पेशी है l जीत गया तो शाम को प्रसाद बांटूंगा l " यह कहकर वह तो चला गया , पर संत ने अपना माथा पीट लिया l रामायण का पाठ कर रहा है , भगवान श्रीराम का चरित्र पढ़ रहा है और भाई पर चार गज जमीन के लिए मुकदमा l क्या लाभ है ऐसी भक्ति से ? दिखावा है l
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