लघु -कथा ----- सत्य की राह बहुत कठिन है , सच्चाई की राह पर चलना तलवार की धार पर चलने के समान है , लेकिन इस राह पर शांति है , कोई तनाव नहीं l बुराई की राह पर चलना बहुत आसान है , इसमें तुरंत लाभ मिलता है लेकिन ये बुराइयाँ , दुष्प्रवृत्तियां , व्यसन जिन्हें लोग एक बार पकड़ते हैं, वे कुछ ही दिन में उन्हें अपने शिकंजे में जकड़ लेती है और प्राण लेकर ही छोड़ती हैं l --------- नदी में रीछ बहता जा रहा था l किनारे पर खड़े साधु ने समझा कि यह कम्बल बहता आ रहा है l निकालने के लिए वह तैरकर उस तक पहुंचा और पकड़कर किनारे की तरफ खींचने लगा l रीछ जीवित था , प्रवाह में बहता चला आया था l उसने साधु को जकड़ कर पकड़ लिया ताकि वह उस पर सवार होकर पार निकल सके l दोनों एक दूसरे के साथ गुत्थमगुत्था कर रहे थे l कोई नीचे कोई ऊपर l किनारे पर खड़े दूसरे साधु ने उसे पुकारा और कहा --- कम्बल हाथ नहीं आता तो उसे छोड़ दो और वापस लौट आओ l ' जवाब में उस फंसे हुए साधु ने कहा --- मैं तो कम्बल छोड़ना चाहता हूँ पर उसने तो मुझे ऐसा जकड़ लिया है कि छूटने की कोई तरकीब नहीं सूझती , ऐसा लगता है ये मेरे प्राण ही ले लेगा l ' व्यसन ऐसे ही होते हैं , छोड़ने पर भी नहीं छूटते l
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