आज संसार में इतनी अशांति और अस्थिरता है , युद्ध , आतंक , षड्यंत्र ------ सब बुराइयाँ एक साथ अपने चरम पर पहुँच गई हैं l इस स्थिति के अनेक कारण होंगे लेकिन उनके मूल में जो प्रमुख कारण है , वह है --- मनुष्य की मानसिक विकृति l मानसिक विकार यदि बहुत साधारण व्यक्ति में होंगे तो उससे उसके आसपास के कुछ ही लोग आहत होंगे लेकिन उच्च स्थिति में पहुंचे हुए व्यक्ति के मानसिक विकार उतने ही विशाल क्षेत्र को आहत करेंगे जितनी उच्च स्थिति में वह है l मनुष्य के मानसिक विकारों में ' ईर्ष्या ' सबसे जटिल मनोविकृति है l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " आज की परिस्थितियों पर द्रष्टिपात करें तो चारों ओर ईर्ष्या का ही साम्राज्य फैला दिखेगा l भाई -भाई से ईर्ष्या करता है , पड़ोसी -पड़ोसी से l जातियों , संगठन , दलों , सम्प्रदायों , राष्ट्रों के बीच ईर्ष्या की आग फैली हुई है l समाज में फैले संघर्षों का मूल कारण -- ' ईर्ष्या ' है l " किसी व्यक्ति , किसी राष्ट्र के पास यदि कोई ऐसा गुण है , कोई विशेष बात है जिससे उसके पास प्रतिष्ठा , सुख - वैभव है तो ईर्ष्यालु मनोवृति के कारण वह नहीं चाहेगा उसके आसपास के अन्य लोग , --- कोई अन्य राष्ट्र उसके स्तर तक पहुँच जाएँ l जो भी उस स्तर तक पहुँचने के लिए प्रयत्नशील होंगे तो उनकी विफलता के लिए षड्यंत्र , छल -कपट , धोखा ----हर तरह के ओछे प्रयत्न शुरू हो जायेंगे l ऐसे ओछे प्रयास कभी कोई अकेला नहीं करता , ऐसी मानसिकता के लोग बड़ी मजबूती से संगठित हो जाते हैं और अपनी स्थिति के अनुरूप समाज को , राष्ट्र को और संसार को उत्पीड़ित करते हैं l तुलसीदास जी ने लिखा है ---' समरथ को नहीं दोष गोंसाई l ' इसलिए संसार अपनी गति से चलता रहता है लेकिन जब अति हो जाती है तब प्रकृति क्रुद्ध हो जाती है , न्याय के लिए ईश्वर को आना ही पड़ता है l प्रकृति के प्रकोप से बचने का एक ही रास्ता है ---'जियो और जीने दो ' l यह स्मरण रखो ' हम सब एक माला के मोती हैं l '
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