जब संसार में धर्म एक व्यवसाय बन जाता है तब सामान्य जन -जीवन दुःख , तनाव , चिंता , बीमारी , महामारी जैसी समस्याओं से चारों ओर से घिर जाता है l धर्म के नाम पर लड़ाई -झगडे करते रहने से बुद्धि कुंद हो जाती है l जीवन के और भी बहुत से पहलू हैं जिनमे थोड़ा -बहुत सुधार कर के स्वस्थ जीवन जिया जा सकता है l पढना - लिखना , डिग्री होना एक अलग बात है , लेकिन विवेक होना बड़ी बात है और विवेकहीन व्यक्ति भेड़चाल चलता है l धर्म के संबंध में एक दुःखद बात यह भी है कि धर्म केवल पाखंड बन गया है l धर्म का असली मर्म नैतिकता , मानवीयता , सत्य , ईमानदारी , प्रेम , करुणा आदि सद्गुणों को लोग भूल गए हैं इसीलिए संसार में युद्ध , आतंक , लूट , हत्या , आत्महत्या , विवाद आदि बढ़ गए हैं l ------ कांचीपुरम में किसी ने विनोबा जी से कहा कि यहाँ एक ऐसा समुदाय है , जो ईश्वर को नहीं मानता l वे कहने लगे --- " इसमें कौन सी नई बात है ! ऐसे आदमी सारे देश में हैं , सारी दुनिया में हैं l हमें इसकी कोई परवाह नहीं करनी चाहिए , क्योंकि वे लोग भगवान को भले ही नहीं माने, भगवान तो उनको मानता है l बच्चा माँ को भूल जाये तो कोई बात नहीं l माँ बच्चे को भूल जाये , तो बड़ी बात है l आगे वे कहते हैं कि --- " जो यह कहते हैं कि हम भगवान को नहीं मानते , वे यह तो कहते हैं कि हम सज्जनता को मानते हैं , मानवता को मानते हैं l हमारे लिए तो इतना ही बहुत है l मानवता को मानना और ईश्वर को मानना हमारी द्रष्टि में एक ही बात है l जो भगवान को मानते हैं , देखना चाहिए कि वे मानवता , करुणा , दया , सेवा में कितना विश्वास रखते हैं l मूल्यांकन इसी आधार पर होना चाहिए l विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली कि अब मनुष्य स्वयं को ही भगवान समझने लगा है , चाहे जिस आकार -प्रकार की सब्जी , फल उगा ले , चिकित्सा के आधुनिक तरीकों से सबको स्वस्थ कर दे लेकिन ऐसा समझना मनुष्य की सबसे बड़ी भूल है l भोजन सामग्री , मिटटी सब रासायनिक पदार्थों से प्रदूषित हो गई l अब किसी की सामान्य मृत्यु हो , यह तो सुनने में नहीं आता l जो भी मरता है वह किसी न किसी बीमारी या हादसे से ही मृत्यु को प्राप्त होता है l यह चिन्तन का विषय है कि यह कैसी उपलब्धि है ?
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