श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कहते हैं कि आसुरी स्वभाव वाले व्यक्ति ऐसे कर्म करते हैं जिनको करने से उन्हें सुख मिलता है , उनका कोई स्वार्थ सिद्ध होता है l वे ऐसा सोचते हैं क़ि कुकर्म करने से यदि उन्हें सुख मिलता है तो उन्हें कुकर्म कर लेना चाहिए l आसुरी प्रवृति के लोग ईश्वर में और कर्म- विधान में विश्वास नहीं करते हैं l इसलिए किसी भी तरह , कितना सुख भोग लें , यही उनके जीवन का उद्देश्य होता है l ' असुर चाहे कर्मफल में विश्वास करें या न करें , उनके कर्मों का परिणाम तो आखिर सामने आता ही है l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- ' संसार के समस्त भोगों को पागल की तरह भोग लेने का भाव रखने वाले व्यक्ति का जीवन भी पागलपन में , अराजकता में बदल जाता है l उनका जीवन लगभग विक्षिप्त के सामान हो जाता है , जिसमे न कोई दिशा है , न गंतव्य l सुख के पीछे भागने की दौड़ कभी समाप्त ही नहीं होती l
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