अहंकार सारी अच्छाइयों के द्वार बंद कर देता है l अहंकार से ही काम , क्रोध , लोभ जैसे विकार उत्पन्न होते हैं l अहंकारी व्यक्ति संवेदनहीन और निष्ठुर होता है l संसार में जितने भी युद्ध हुए , बड़े पैमाने पर हत्याएं , मारकाट हुईं , अत्याचार , अन्याय किसी न किसी के अहंकार का ही परिणाम है l अहंकारी स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझता है , किसी दूसरे की तरक्की उसे बर्दाश्त नहीं होती l ------ एक राजा था l उसे यह अहंकार हो गया कि वह ही जगत का पालक है l शास्त्रकारों ने व्यर्थ ही भगवान विष्णु को जगत का पालन करने वाला कहा है l उस राजा को इस बात का अभिमान था कि वही सब का पेट भर रहा है , यदि वो सब पर कृपा न करे तो लोग भूखे मर जाएँ l l एक संन्यासी को इस बात का पता चला तो वे उस राज्य में गए l राजा उनको भी अपने वैभव के बारे में बताने लगा और बोला --मैं ही सब का पालक हूँ l संत ने पूछा --- तेरे राज्य में कितने कुत्ते , कौए , कीड़े -मकोड़े हैं ? राजा चुप हो गया l संत ने कहा ---- जब तू यह नहीं जानता तो उनको भोजन कैसे भेजता होगा ? राजा ने लज्जित होकर कहा --- तो क्या भगवान कीड़े -मकोड़ों को भी भोजन देते हैं ? यदि ऐसा है तो मैं एक कीड़े को डिबिया में बंद कर के देखता हूँ l कल देखूंगा कि भगवान इसे कैसे भोजन देते हैं l दूसरे दिन राजा ने संत के सामने डिबिया खोली , तो वह कीड़ा चावल का एक दाना बड़े प्रेम से खा रहा था l यह चावल डिबिया बंद करते समय राजा के मस्तक से गिर पड़ा था l अब उस अहंकारी ने माना कि भगवान ही सबका पालक है , हम तो सिर्फ माध्यम हैं l
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