' जब -जब होता नाश धर्म का और पाप बढ़ जाता है , तब लेते अवतार प्रभु यह विश्व शांति पाता है l ' जब धरती पर आसुरी तत्व प्रबल हो जाते हैं , युद्ध दंगे , धर्म ,के नाम पर झगडे , नारी का अपमान , शोषण , हिंसा , बच्चों के प्रति अपराध बढ़ जाते हैं अर्थात नैतिक और मानवीय मूल्य तेजी से गिरने लगते हैं तब किसी न किसी रूप में ईश्वर इस धरती पर आते हैं , अनीति और अत्याचार का अंत होता है और नए युग की शुरुआत होती है l पुराणों की अनेक कथाएं हैं जिनमे यह बताया गया है कि असुरों में बुराइयाँ तो अनेक होती हैं लेकिन ये बड़े तपस्वी होते हैं और अपनी तपस्या के बल पर भगवान से वरदान पाकर शक्तिशाली हो जाते हैं और फिर अपनी ताकत के बल पर स्वयं को ही भगवान समझने लगते हैं , अत्याचार और अनीति का मार्ग अपनाकर अपनी शक्ति का दुरूपयोग करते हैं l यहाँ एक बात महत्वपूर्ण है कि जितने भी असुर हुए जैसे हिरन्यकश्यप , रावण , भस्मासुर आदि सभी असुरों ने शिवजी की तपस्या की और उनसे वरदान पाकर ही शक्तिशाली हुए l भगवान श्रीराम ने कभी किसी असुर को वरदान नहीं दिया , उन्होंने तो असुरता के अंत के लिए ही धरती पर जन्म लिया l पुराने समय में ऐसी कथा भी प्रचलित थी कि यदि हम मनुष्य रूप में ही भगवान श्रीराम के जीवन को देखें तो धरती वासियों ने उन्हें बहुत दुःख दिए , वनवास दिया , रावण से युद्ध में कोई मदद नहीं की , जब राजा बने तो सीताजी को जंगल भिजवा दिया , जब पुत्र मिले तब सीताजी धरती में समा गईं l ऐसे धरती के लोगों को वे क्यों वरदान देंगे ? भगवान राम ने तो स्वयं रावण के अंत के लिए 'शक्ति पूजा ' की थी l भगवान शिव हैं ' भोले बाबा ' वे देवता हों या दैत्य , जो भी उनकी तपस्या करता है उसे वरदान देते हैं , फिर भगवान विष्णु अपने विभिन्न अवतारों में उन्ही वरदान में कहाँ रास्ता है , उसे मालूम कर उस असुर का वध करते हैं l भगवान श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं , उनमें जो गुण थे उनमे से एक भी गुण इस धरती में कहीं देखने को नहीं मिलेगा l इसलिए भी वे प्रसन्न नहीं होते l यही कारण है कि द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने सबको ' कर्मयोग ' का उपदेश दिया , स्वयं कर्मयोगी की तरह जीवन जिया और कलियुग के लिए भी ' कर्तव्य पालन ' को सबसे बड़ा तप कहा l ईश्वर का यही सन्देश है कि जो जहाँ है , जिस स्थिति में है अपना कर्तव्यपालन निष्पक्ष होकर पूरी ईमानदारी से करे तो ईश्वर स्वयं उसके ह्रदय में प्रकाशित होंगे l
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