वैराग्य शतक में भतृहरि ने भय की स्थिति का सूक्ष्म विश्लेषण किया है ---- ' भोग में रोग का भय , सत्ता में गिरने का भय , धन में चोरी का भय , सामाजिक स्थिति में शत्रुओं का भय , सौन्दर्य में बुढ़ापे का भय और शरीर में मृत्यु का भय है l इस तरह संसार में सब कुछ भय से युक्त है l ' अध्यात्मवेत्ताओं के अनुसार संकीर्ण स्वार्थ , वासना और अहं से युक्त अनैतिक जीवन भय का प्रमुख कारण है l पुराण की अनेक कथाएं भी इसी सत्य को प्रकट करती हैं कि सब कुछ अपने पास होने पर भी व्यक्ति भयभीत है क्योंकि 'सब कुछ ' के साथ अहंकार भी है , स्वार्थ भी है l कंस कितना शक्तिशाली था , लेकिन एक आकाशवाणी से डर गया l उसे आवाज सुनाई दी कि उसकी बहन देवकी का आठवें पुत्र के हाथों उसकी मृत्यु होगी l आठवें का इंतजार उसके लिए कठिन था , भय इतना था कि देवकी और उसके पति को कैद कर दिया और उसके छह पुत्र और एक पुत्री को पैदा होते ही मार दिया l जब उसे पता चला कि आठवां पुत्र गोकुल में है तो गोकुल में उस दिन पैदा हुए सभी नवजात शिशुओं को मारने का आदेश दे दिया l l इतना शक्तिशाली होते हुए बच्चों से डर गया l अत्याचारी , अन्यायी अपने अंदर से बहुत कमजोर होता है l ऋषियों का वचन है ---- ' जो ईश्वर से भय खाता है उसे दूसरा भय नहीं सताता l ' ईश्वर से डरने वाला कभी कोई गलत कार्य नहीं करता क्योंकि उसे पता है कि ईश्वर देख रहा है , यह भाव उसे निडर बना देता है l
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