15 May 2023

WISDOM ----

    पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ----' अहंकार  से  ईर्ष्या , द्वेष   और  क्रोध  उत्पन्न  होता  है  l  अहंकार  सारी  अच्छाइयों  के  द्वार  बंद  कर  देता  है  l "  अहंकारी  व्यक्ति  स्वयं  को  श्रेष्ठ  समझकर  दूसरों  का  अपमान  करता  है  l   अपमानित  व्यक्ति  के  भीतर  कभी  बदले  की  भावना  उत्पन्न  हो  जाती  है   तो  उसका  परिणाम  घातक  होता  है  l  महाभारत  का  एक  प्रसंग  है ---  द्रोणाचार्य    और  द्रुपद   लड़कपन  में  गहरे  मित्र  थे  l  साथ -साथ  खेले -कूदे  , उठे -बैठे  l  लेकिन  जब  द्रुपद  राजा  बन  गए   तो  ऐश्वर्य  के  मद  में  आकर   द्रोणाचार्य  को  भूल  गए  l  उनकी  गरीबी  देखकर  उनका  अपमान  किया   और  कहा --- राजा  ही  राजा  के  साथ  मित्रता  कर  सकता  है  l  द्रोणाचार्य  इस  अपमान  को  भूले  नहीं  ,  उन्हें  सही  वक्त  का  इंतजार  था  l    उन्होंने  कौरव -पांडवों  को  धर्नुविद्या  सिखाई  l  जब  राजकुमारों  की  शिक्षा  पूर्ण  हो  गई   तो  उन्होंने  गुरु दक्षिणा  के  रूप  में  महाराज  द्रुपद  को   कैद  कर  लाने  के  लिए  कहा  l  उनकी  आज्ञानुसार   पहले  दुर्योधन   ने   द्रुपद  के  राज्य  पर  धावा  बोला  , पर  पराक्रमी   द्रुपद  के  आगे  वे  ठहर  नहीं  सके  l  तब  द्रोणाचार्य  ने  अर्जुन   को   भेजा   l  अर्जुन  ने  द्रुपद  की  सेना  को  तहस -नहस  कर  दिया   और  राजा  द्रुपद  को  उसके  मंत्री  सहित  कैद  कर   गुरु  द्रोणाचार्य  के  सामने  ला  खड़ा  कर  दिया  l   अब  द्रोणाचार्य  ने  द्रुपद  को  पुरानी    बात  याद  दिलाई  कि  तुमने  कहा  था --- राजा  ही  राजा  के  साथ  मित्रता  कर  सकता  है  '  , इसलिए  तुम्हारा  आधा  राज्य  ही  तुम्हे  वापस  कर  रहा  हूँ   क्योंकि   मेरा  मित्र  बनने  के  लिए  तुम्हे  भी  तो  राज्य  चाहिए  l     द्रोणाचार्य  ने  इसे  अपने  अपमान  का  काफी  बदला  समझा   और  द्रुपद  को  सम्मान  के  साथ  विदा  किया  l  इस  प्रकार  द्रुपद  का  घमंड  तो  चूर  हुआ   लेकिन   उनके    अभिमान  को  ठेस  पहुंची   और  उनमें  द्रोणाचार्य  से  बदला  लेने  की  भावना  बलवती  होती  गई  l   इस  उदेश्य  को  पूरा  करने  के  लिए  उन्होंने  कई  कठोर  तप  किए   कि  उन्हें  एक  ऐसा  पुत्र  हो  जो  द्रोणाचार्य  को  पराजित  कर  सके   और  एक  पुत्री  हो   जिसका  विवाह  अर्जुन  से  हो  l  उनकी  यह  कामना  पूर्ण  हुई  l  महाभारत  के  युद्ध  में  उनके  पुत्र  धृष्टद्द्युमन  ने   द्रोणाचार्य  का  वध  किया   और  द्रुपद  की  पुत्री  द्रोपदी  से  अर्जुन  का  विवाह  हुआ  l   

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