महाभारत के कुछ प्रसंग इस सत्य को बताते हैं कि मनुष्य के जीवन में आने वाली समस्या या दुर्घटना के लिए ईश्वर उसे सचेत करते हैं l अब यह व्यक्ति के विवेक पर निर्भर है कि वह ईश्वर के उन संकेतों को समझ पाता है या नहीं , और यदि समझ गया है तो उसके अनुरूप आचरण करता है या नहीं l जैसे ---- महाभारत में --- कर्ण के शरीर में जन्मजात कवच और कुंडल थे , जो अभेद्य थे , उनके रहते उसे कोई भी मार नहीं सकता था l एक रात भगवान सूर्यदेव स्वयं उसके स्वप्न में आए और उससे कहा कि देवराज इंद्र तुम्हारे कवच -कुंडल मांगने आयेंगे l तुम्हारी सुरक्षा के लिए इनका होना जरुरी है इसलिए तुम उन्हें कवच -कुंडल देने से मना कर देना l कर्ण था महादानी , उसने सूर्यदेव की बात नहीं मानी और जब देवराज वेश बदलकर आए , कवच कुंडल माँगा तो कर्ण ने सहर्ष ही अपने शरीर से निकालकर उन्हें कवच कुंडल दान कर दिया और स्वयं ही अपनी सुरक्षा में एक कमी कर ली l पांडव प्रभु की हर बात को बिना किसी प्रतिरोध के स्वीकार कर लेते थे , उनमे समर्पण का भाव था l जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया और अश्वत्थामा ने सोचा कि पांडवों को सोते समय कपट से मार दूंगा l भगवान कृष्ण तो अन्तर्यामी थे , सब जान गए , उन्होंने पांडवों को सोते से जगाया और कहा --- मेरे साथ गंगा किनारे चलो l पांडवों ने बिना किसी प्रतिरोध के उनकी बात मन ली और उठकर चल दिए l श्रीकृष्ण ने द्रोपदी पुत्रों से भी साथ चलने को कहा , परन्तु बाल बुद्धि होने के कारण उन्होंने इनकार कर दिया और कहा --- आप जाओ , हमें तो नींद आ रही है , सोयेंगे l अश्वत्थामा ने शिविर में आग लगा दी l प्रभु के जगाने पर जो जग गए , वे बच गए और जिन्होंने सोने की जिद की , वे लंबी नींद सो गए l आज भी हमारे ह्रदय में विद्यमान परमेश्वर हमें समय -समय पर विभिन्न संकेत देते हैं l यदि हमारा मन निर्मल है और कुछ समय हम मौन रहते हैं तो उन ईश्वरीय संकेतों को समझकर , उनके अनुरूप आचरण कर अपने जीवन को सँवार सकते हैं l
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