लघु कथा ---- यह संसार प्रकृति के नियमों से चल रहा है l कर्म का विधान हर जगह लागू है l कोई भी उससे बच नहीं सकता l ईश्वर ने यह कर्म विधान बनाया और सर्वशक्तिमान होते हुए भी वे स्वयं इस कर्म विधान से बच नहीं सकते l यदि उनसे भी कोई भूल हुई है तो उन्हें भी अपने कर्म का फल भोगना पड़ता है l पुराण की एक कथा है ---- एक बार दैत्यों ने बहुत उपद्रव मचाया और देवताओं को बहुत कष्ट देकर भागने लगे l जब देवताओं ने उनका पीछा किया तो वे भृगु ऋषि के आश्रम में छिप गए l उस समय ऋषि बाहर एकांत में तप करने गए थे l ऋषि पत्नी ने उन्हें कहा कि तुम लोग अत्याचार , अन्याय करते हो , यह ठीक नहीं है l दैत्यों ने कहा --- ' आप ठीक कहती हैं लेकिन विष्णु हमारे पीछे आ रहे हैं , हमें शरण दो , हमारी रक्षा करो l " और वे वहां छुप गए l विष्णु भगवान आए और ऋषि पत्नी से प्रार्थना की --- " आप इन दैत्यों को बाहर कर दें l " ऋषि पत्नी ने कहा --- " अभी तो ये हमारे शरणागत हैं , आश्रम में आप इन्हें नहीं मार सकते , जब बाहर निकलें तब आप इन्हें मार देना l " विष्णु भगवान ने कहा ---- " ये हमारे अपराधी हैं , इन्हें अभी ख़त्म कर देंगे l " ऋषि पत्नी ने जब उन्हें आगे बढ़ने से रोका , शरणागत की रक्षा करना उनका धर्म था l इसलिए भगवान विष्णु को उनका वध करना पड़ा और इसके बाद उन्होंने अपने चक्र से दैत्यों को मार गिराया l भृगु ऋषि तक जब पत्नी की मृत्यु का समाचार पहुंचा तो वे आए और मन्त्र बल से पत्नी को जीवित कर दिया l उन्होंने कहा ---- " स्रष्टि में कोई नियम है कि नहीं , विष्णु की हिम्मत कैसे पड़ गई l बिना पत्नी के जीवन कैसा होता है , यह विष्णु को भी अनुभव होना चाहिए l उन्होंने विष्णु भगवान को शाप दिया जिसके फलस्वरूप रामावतार में भगवान राम कभी सीता के साथ नहीं रह पाए l कर्मफल के नियम का कोई अपवाद नहीं है l आज मनुष्य अपराध करके , दुष्कर्म कर के दंड से बच सकता है लेकिन ईश्वर के न्याय से , कर्मफल से कोई नहीं बच सकता ' भगवान के घर देर है , अंधेर नहीं है l '
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