1 . ' मन से भी संयमी बनो '---- एक व्यक्ति ने कन्फ्यूशियस से प्रश्न किया ---- 'संयमित जीवन बिताकर भी मैं रोगी हूँ , महात्मन ! ऐसा क्यों ? ' कन्फ्यूशियस ने कहा ---- "भाई , तुम शरीर से संयमित हो , पर मन से नहीं l अब जाओ ईर्ष्या , द्वेष , छल -कपट करना बंद कर दो तो तुम्हे संयम का पूर्ण लाभ मिलेगा l "
2 .' ह्रदय शुद्धि ' ----- भक्त कर्माबाई भगवान पंढरीनाथ को पुत्र भाव से पूजती थीं और प्रेम करतीं l वे प्रात:काल बिना स्नान किए ही खीर बनातीं और भगवान का बाल -भोग इस भाव से लगातीं कि भगवान को शैया त्यागते ही भूख लगती है l एक दिन एक पंडितजी ने उन्हें इस तरह बिना स्नान के भोग लगाते देखा तो कहा --- कर्माबाई ! भगवान को भोग नहा -धोकर ही लगाना चाहिए , बिना स्नान के भोग लगाना उचित नहीं l " कर्माबाई को बात समझ में आ गई और उस दिन उन्होंने स्नान कर के ही भोग लगाया l स्वाभाविक है स्नान आदि से निवृत्त होने में कुछ देर हो गई l रात उन्होंने स्वप्न में देखा ---भगवान पंढरीनाथ खड़े भूख -भूख चिल्ला रहे हैं l कर्माबाई ने पूछा --- " देव ! आज खीर नहीं खाई क्या ? " भगवान बोले ---- " माँ ! खीर तो मैंने खा ली , पर आज तेरा वह प्रेम , वह भावना नहीं मिली जो रोज मिला करती थी l " कर्माबाई उस दिन से बिना नहाए ही फिर भोग चढ़ाने लगीं l
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