कलियुग की सबसे बड़ी समस्या यह है कि कैसे पहचाना जाए कि कौन देवता है और कौन असुर है ? क्योंकि असुरता आज वेश बदलकर , शराफत का नकाब पहन कर समाज में घुलमिल गई है l आज स्थिति इतनी विकट है कि पारिवारिक रिश्तों में ही हम सारा जीवन बीत जाने पर भी नहीं समझ पाते कि व्यक्ति का सच क्या है ? जो जैसा हमें दीखता है वह वैसा ही है या परदे के पीछे कुछ और है l परिवार में होने वाली हिंसा , उत्पीड़न , भाई -भाई के बीच होने वाले संपत्ति आदि के विवाद , अपने स्वार्थ के लिए अपने ही परिवार के सदस्य का शोषण , जो कमजोर है उसे सताना , चैन से जीने न देना यह सब असुरता ही है l इसी का विस्तृत रूप समाज , विभिन्न संस्थाओं , राष्ट्र और संसार में देखने को मिलता है l संक्षेप में जहाँ स्वार्थ , लालच , झूठ , बेईमानी , छल , कपट , षड्यंत्र , दूसरों का हक छीनना , नकारात्मक शक्तियों का प्रयोग कर पीठ पीछे वार करना -----यह सब असुरता के लक्षण हैं l जिसमें यह दुर्गुण जितने अधिक हैं वह उतना ही बड़ा असुर है , वह अपने ज्ञान , अपनी शक्ति का दुरूपयोग कर के सम्पूर्ण प्रकृति को प्रदूषित करता है , नाराज करता है l असुरता अपना साम्राज्य चाहती है , सबको अपना गुलाम बनाना चाहती है l उसका देवत्व पर आक्रमण करने का अपना एक पैटर्न है l देवत्व को मिटाने के लिए सबसे पहले धन का लालच दिया जाता है , फिर वासना का जाल बिछाया जाता है , मोह जाल में फंसाने के लिए उसके रिश्तों में फूट डालने का भरपूर प्रयास किया जाता है l छल , कपट षड्यंत्र , तंत्र -मन्त्र , विभिन्न नकारात्मक शक्तियों का प्रयोग कर देवत्व को मिटाने का प्रयास किया जाता है l असुरता बड़ी मजबूती से संगठित है इसलिए यह सब कार्य बड़े संगठित रूप से ही किया जाता है l इस जंग में विजयी वही होता है जिसमें विवेक होता है , जो सत्कर्म कर के , सन्मार्ग पर चलकर ईश्वर की कृपा प्राप्त कर लेता है l कामना , वासना , लोभ , लालच और मोह के जाल से बच कर निकलने की समझ और विवेक केवल ईश्वरीय कृपा से ही प्राप्त होता है l विज्ञान के पास ऐसा कोई यंत्र नहीं है जो व्यक्ति की बुद्धि में विवेक और सही निर्णय लेने की समझ पैदा कर सके l गीता में भगवान ने कहा है कि निष्काम कर्म से ही मन का मैल साफ़ होता है और विवेक जाग्रत होता है l
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