यदि नैतिकता और जीवन मूल्यों की शिक्षा व्यक्ति को उसके बचपन से ही न दी जाये तो धीरे -धीरे एक दिन वह समय आता है जब सब कुछ होते हुए भी जीवन अर्थहीन और भीतर से खोखला हो जाता है l बाहरी तौर से देखने पर सम्पन्नता है लेकिन सुख नहीं है l इसका कारण यही है कि अपने अहंकार के पोषण और अधिकाधिक धन कमाने के लिए व्यक्ति अपनी आत्मा की आवाज को मारकर अनैतिक और अमर्यादित आचरण करता है l इसका सबसे बुरा प्रभाव पारिवारिक जीवन पर पड़ता है l हमारे धर्मग्रंथ हमें शिक्षा देते हैं लेकिन सन्मार्ग पर चलना कठिन है इसलिए लोग बुराई का सरल मार्ग चुन लेते हैं l रावण को हर वर्ष जलाते हैं ताकि उसकी बुराई का अंत हो जाये लेकिन उसके साथ पटाखे आदि का जहरीला धुंआ लोगों के मन और विचारों में घुल जाता है और रावण के दुर्गुण लोग बड़ी सरलता से अपना लेते हैं l रावण के पास सब कुछ था , धन -वैभव , सुन्दर पत्नियाँ लेकिन फिर भी असंतुष्ट l कहते हैं पार्वती जी की जिद्द पर शिवजी ने उनके लिए सोने का महल बनवाया था , रावण ने उसे ही वरदान में मांग लिया l दूसरों के सुख को छीनने की आदत बन जाती है l भगवान राम -सीता के वन के कष्टों के बीच भी सुन्दर प्रेमपूर्ण जीवन को वह देख न सका , सीता -हरण किया l रावण अभी मरा नहीं है , वह लोगों के विचारों में समा गया है l रावण जैसी ओछी सोच के कारण ही कितने परिवारों में तनाव है , परिवार टूट रहे हैं l लोग अपने सुख से सुखी नहीं है , दूसरों के सुख से दुःखी है l दूसरों का सुख छीनने में कोई कोर -कसर बाकी नहीं रखते l यदि आरम्भ से ही बच्चों को नैतिक और मर्यादापूर्ण जीवन जीने की शिक्षा दी जाये , कर्मफल विधान को समझाया जाये तो वह कभी अपने पथ से भटकेगा नहीं और तभी स्वस्थ समाज की कल्पना संभव होगी l
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