यह संसार एक रंगमंच है यहाँ हम सभी अपनी -अपनी भूमिका निभाने आते हैं l ईश्वर ने धरती पर जन्म लेकर हमें सिखाया कि काम कोई भी छोटा -बड़ा नहीं होता , हमें जो भी कार्य मिला है , जो भूमिका हमें मिली है उसे अहंकार रहित होकर समर्पण भाव से निभाएं l महाभारत का प्रसंग है ---- भगवान श्रीकृष्ण तो सर्वशक्तिमान थे लेकिन उन्होंने स्वयं महाभारत युद्ध में सारथी की भूमिका चयन की थी और इस भूमिका को बखूबी निभाया l एक सारथी की तरह वे सर्वप्रथम अर्जुन को ससम्मान रथ में चढ़ाते और उसके बाद स्वयं आरूढ़ होते और अर्जुन के आदेश की प्रतीक्षा करते l फिर संध्या के समय जब युद्ध बंद हो जाता तब वे पहले उतरकर फिर अर्जुन को बड़ी आवभगत के साथ उतारते l भगवान श्रीकृष्ण अपने इस अभिनय को सम्पूर्ण समर्पण के साथ निभा रहे थे l युद्ध का अंतिम दिन , युद्ध समाप्त हुआ , अब भगवान कृष्ण सदा की तरह अर्जुन से पहले नहीं उतरे और अर्जुन को संबोधित करते हुए बोले --"पार्थ ! आज तुम रथ से पहले उतर जाओ l तुम उतर जाओगे तब मैं उतरता हूँ l अर्जुन को आश्चर्य हुआ लेकिन कहना मान कर वे पहले उतर गए l अर्जुन के उतरने के बाद भगवान कृष्ण धीरे से उतरे और अर्जुन के कंधे पर हाथ रखकर उन्हें रथ से दूर ले गए , उसके बाद एक भयानक विस्फोट के साथ रथ जलकर ख़ाक हो गया l अर्जुन ने आश्चर्य से पूछा --- " हे कान्हा ! आपके उतरते ही पल भर में यह रथ भस्मीभूत हो गया , ये क्या रहस्य है ? " भगवान ने कहा ---- " हे पार्थ ! यह रथ तो पितामह भीष्म के दिव्यास्त्रों के प्रहार से मृत्यु का वरण कर चुका था , इस दिव्य रथ की आयु समाप्त हो चुकी थी लेकिन आयु समाप्ति के बाद भी इसकी उपयोगिता वांछित थी इसलिए यह मेरे संकल्प बल से चल रहा था l भगवान का संकल्प अटूट और अटल होता है l यह संकल्प सम्पूर्ण स्रष्टि में जहाँ भी लग जाता है वहीँ अपना प्रभाव दिखाता है और संकल्प के पूर्ण होते ही यह शक्ति पुन: भगवान के पास चली जाती है , उसके बाद जो हुआ वो तुमने देखा l अर्जुन ने अपने जीवन की बागडोर भगवान के हाथ में सौंप दी थी , भगवान ने उसे हर मुसीबत से बचाया l यदि हम भी अर्जुन की तरह अपना कर्तव्यपालन करते हुए अपने जीवन की बागडोर भगवान के हाथ में सौंप दे , स्वयं को ईश्वर के चरणों में समर्पित करें तो जीवन से भय समाप्त हो जाये और सुख -शांति से तनाव रहित जिन्दगी जी सकें l
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