19 March 2024

WISDOM -----

   एक  बार  की  बात  है  भगवान  विष्णु   धरती  के  निवासियों  से  बहुत  प्रसन्न  थे  और  मुक्त हस्त  से   सभी  प्राणियों  को   उनकी  इच्छानुसार  धन -धन्य , सुख -स्वास्थ्य ,  धन -रत्न , पुत्र -पौत्र ,  वैभव -विलास  सब  वितरित  कर  रहे  थे  l  वैकुण्ठ  में  बड़ी  भीड़  थी  l  वैकुण्ठ  का  कोष  रिक्त  होते  देख  महालक्ष्मी  ने   विष्णु जी  से  कहा ---" यदि  इस  प्रकार  मुक्त  भाव  से   आप  संपदा  लुटाते  रहे  तो  वैकुण्ठ  में  कुछ  नहीं  बचेगा  ,  तब  हम  क्या  करेंगे  ? "  विष्णुजी   मंद -मंद  हँसे  और  बोले  ---- " देवी  !  मैंने  सारी  संपदा  तो  नहीं  दी  l   एक  निधि  ऐसी  है   जिसे  नर , किन्नर , गन्धर्व , देवता , असुर   किसी  ने  भी  नहीं  माँगा  है  l "  महालक्ष्मी  पूछ  बैठीं --- " कौन  सी  निधि  ? "  विष्णु जी  ने  कहा ---- "  शांति --- उसे  कोई  नहीं  मांगता  l  ये  प्राणी  भूल  गए  हैं  कि   शांति  के  बिना  कोई  भी   संपदा  पास  नहीं  रह  सकेगी  l  उन्होंने  जो  माँगा  वह  मैंने  दिया   l  अपने  लिए  मैंने  मात्र  शांति  की  निधि  सुरक्षित  रख  ली  है  l  आज  के  युग  की  सच्चाई  यही  है  ,  चाहे  कितने  ही  सुख  के  साधन  हो ,  लेकिन   किसी  के  मन  को  शांति  नहीं  है  , सब  भाग  रहे  हैं  , एक  अंधी  दौड़  है  l  यह  शांति  कैसे  मिले  ? -------   देवर्षि  नारद  के  गुरु  थे  --सनत्कुमार  जी  l  नारद जी  ने  उनसे  ही  सारी  विद्याएँ , कलाएं  सीखीं   l  गुरु  ने  अपनी  दिव्य  द्रष्टि  से  देखा  कि  इतने  ज्ञान  के  बावजूद  नारद  के  मन  में   आकुलता  है  , शांति  नहीं  है   l  सनत्कुमार जी  ने  नारद जी  से  कहा --- "     तुम  अपने  ज्ञान  का  घमंड  नहीं  करो , भूल  जाओ  कि  तुम  ज्ञानी  हो  ,  अपने  ज्ञान  को  भक्ति  के  साथ  वितरित  करना  आरम्भ  कर  दो  l  ज्ञान , भक्ति  और  कर्म  के  संयोग   से  ही  तुम्हारे  मन  को  शांति   मिलेगी  l  नारद जी  ने  भक्ति  गाथा  लिखी  , संसार  में  भ्रमण  करते  हुए  उसको    जन -जन  तक  उसे  पहुँचाया    तब  उनके  मन  को  शांति  मिली  और  वे  भक्त  शिरोमणि  कहलाये  l  अनेकों  को  परामर्श  देकर  उनके  जीवन  की  दिशा  बदल  दी  l  उनके  परामर्श  से  ही   ध्रुव , प्रह्लाद , महर्षि  वाल्मीकि   भक्ति  के  चरम  पर  पहुंचे  l  

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