हवा जोर से चलने लगी ।धरती की धूल उड़ -उड़कर आसमान पर छा गई ।धरती से उठकर आकाश पर पहुँच जाने पर धूल को बड़ा गर्व हो गया ।वह सहसा कह उठी -"आज मेरे समान कोई भी ऊँचा नहीं ।जल ,थल ,नभ के साथ दसों दिशाओं में मैं ही व्याप्त हूँ ।बादल ने धूल की बात सुनी ।धूल की भूल पर ,उसके गर्व पर अट्टाहास किया और अपनी जलधाराएँ खोल दीं ।देखते -ही -देखते आसमान से उतरकर धूल धरती पर जल के साथ दिखाई देने लगी ।दिशाएँ साफ हो गईं ,कहीं भी धूल का नामो -निशान तक नहीं रहा ।जल के साथ बहती हुई धूल से धरती ने पूछा -"रेणुके !तुमने अपने उत्थान -पतन से क्या सीखा ?"धूल ने कहा -"माता धरती !मैंने सीखा कि उन्नति पाकर किसी को गर्व नहीं करना चाहिए ।गर्व करने वाले मनुष्य का पतन अवश्य होता है ।
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