मनुष्य का अच्छा स्वभाव ही उसका सौन्दर्य है ।वह कुरूपता की कमी पूरी कर सकता है ,किन्तु बुरे स्वभाव के रहते देवताओं जैसे सौन्दर्य का भी कोई मूल्य नहीं ।लुकमान से किसी ने प्रश्न किया कि आपने इतनी शिष्टता कहाँ से सीखी ?लुकमान ने उत्तर दिया -"भाई ,मैंने शिष्ट व्यवहार अशिष्ट लोगों के बीच रहकर ही सीखा है ।लुकमान का उत्तर सुनकर लोग अचरज में पड़ गये ।लुकमान ने स्पष्ट करते हुए कहा कि अशिष्ट लोगों के बीच रहकर ही मैंने जाना कि अशिष्ट व्यवहार क्या है ।मैंने पहले उनकी बुराइयों को देखा ।फिर देखा कि कहीं वे बुराइयां मुझ में तो नहीं हैं ।इस तरह के आत्म निरीक्षण से मैं बुराइयों से दूर होता गया और आत्म सुधार के फलस्वरूप लोग मुझे लुकमान से हजरत लुकमान कहने लगे ।
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