मनुष्य का मन ऐसा हो जैसा बाग का रखवाला माली होता है ।माली का काम केवल पौधा लगाना नहीं ,वरन`फूलों के पौधों के आस -पास उगने वाली अनावश्यक झाड़ -झंखाड़ को भी उखाड़ फेंकना है ।गुणों की पौध भी तभी अंकुरित एवम पल्लवित हो सकती है ,जब मानसिक विकारों को समय -समय पर मस्तिष्क से निकाला जाता रहे ।मनुष्य जीवन की पवित्रता के लिये शारीरिक स्वच्छता ही काफी नहीं आन्तरिक सफाई भी चाहिये ।
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