9 January 2013

BEAUTY

आत्मा की प्रसन्नता में अक्षय सौन्दर्य निहित है ।भव्य विचारों से सुन्दर बनिये ।हम सबका मुख -मंडल आंतरिक सद्गुणों से आकर्षक बनता है ।यदि हमारे मन में प्रेम ,दया ,सज्जनता ,ईमानदारी आदि सद्गुण हैं तो इन्ही भावों की गुप्त तरंगे हमारे शरीर में सर्वत्र दौड़ जायेंगी ।आत्मा प्रसन्न हो जायेगी और मुख मुद्रा मोहक बन जायेगी ।अच्छे और बुरे विचारों की धारा मानसिक केन्द्र से चारों ओर बिखरकर खून के प्रवाह के साथ चमड़ी की सतह तक एक विद्दुत -धारा के समान आती है और वहां अपना प्रभाव छोड़ जाती है ।यदि कोई व्यक्ति श्रेष्ठ दैवी गुणों का निरंतर मानसिक अभ्यास कर सके ,तो वह कितना ही कुरूप हो ,मोहक -मादक आकर्षण -शक्ति से परिपूर्ण हो सकता है ।

No comments:

Post a Comment