मन एक दर्पण है जो हमारे भले -बुरे कर्मो का साक्षी होता है | जब कोई व्यक्ति कोई अपराध या गलती करता है तो उस समय वह भले ही इसे कितना ही छिपाए या इस पर तर्क का परदा डाले ,लेकिन उसका मन इसका साथी अवश्य होता है | हिंसा हमें पशु बनाती है और दया हमें सच्चा इन्सान बनाती है | यह हमें ही चयन करना है कि हमें क्या बनना है और किस ओर बढ़ना है | पशु बनना आसान है ,सरल है परन्तु इन्सान बनना कठिन और समय साध्य प्रक्रिया है | यदि हमें देवत्व की ओर बढ़ना है तो धैर्य और संयमपूर्वक अपने अंदर की हिंसक वृति को काबू में लाना होगा | संकल्पपूर्वक हिंसा की राह छोड़कर दया और करुणा के पथ पर अग्रसर होना होगा |
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